इन दिनों महिला क्रिकेट का वल्र्डकप चल रहा है। भारतीय टीम ने पहले ही सेमीफाइनल का टिकट पका कर लिया है। अपने इस सफर में भारतीय टीम ने कोई मैच नहीं हारा। भारतीय टीम में एक से बढ़कर एक खिलाड़ी है। उन्हीं में से एक हैं भारतीय स्पिनर राधा यादव। श्रीलंगा के साथ हुए मैच में राधा ने चार ओवर में 23 रन देकर 4 विकेट झटके। विकेट लेने वालीं इस खिलाड़ी को प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया।
राधा ने टीम इंडिया तक का अपना सफर यूं ही तय नहीं किया। इसके लिए उन्होंने कड़ा संघर्ष किया। राधा का खेल जितना शानदार है, उनकी कहानी उतनी ही प्रेरक है। राधा ने जब पहली बार टीम इंडिया में जगह बनाई थी तो तब उनकी उम्र केवल 17 साल थी। राधा के लिए सफर इतना आसान नहीं रहा। मुंबई के कोलिवरी क्षेत्र की बस्ती में 220 फीट की झुग्गी से टीम इंडिया तक सफर तय किया।
उनको टीम में भी मौका किश्मत से मिला। उनको चोटिल राजेश्वरी गायकवाड़ की जगह उन्हें दक्षिण अफ्रीका दौरा पर चुना गया था। मूल रूप से राधा मूलत रूप से उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के अजोशी गांव की रहने वालीं हैं। यहीं गांव में ही उन्होंने पढ़ाई की। इंटर की परीक्षा केएन इंटर कॉलेज बांकी से उत्तीर्ण की। पिता प्रकाश चंद्र यादव मुंबई में डेयरी उद्योग से जुड़े हैं तो राधा भी पिता के पास जाकर क्रिकेट की कोचिंग लेने लगीं और 2018 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया। शुरुआत में वह मुंबई टीम का हिस्सा थी।
विपरीत परिस्थितियों के बावजूद न तो पिता ने हार माना और न ही बेटी ने हौसला छोड़ा।गली में स्टंप लगाकर लड़कों के साथ एकमात्र लड़की को खेलते देख आसपास के लोग परिवार पर तंज कसते थे। पिता ओमप्रकाश बताते हैं कि उन्हें अक्सर यह सुनने को मिलता था कि बेटी को इतनी छूट ठीक नहीं। लड़के कुछ बोल दें या मारपीट कर दें तो दिक्कत हो जाएगी। मगर उन्होंने कभी भी इसकी परवाह नहीं की।