श्रीनगर एनआईटी संस्थान को मैदानों में शिफ्ट करने के लिए हो रहे छात्रों के प्रदर्शन ने राज्य के पहाड़ी होने पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। पहाड़ों में विकास की संभावनाओं की तलाशती योजनाओं और पहाड़ों में एक बेहतर भविष्य की उम्मीदें श्रीनगर एनआईटी के छात्रों के प्रदर्शन के बाद मायूस नजर आती हैं। ऐसे में कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं। क्या वाकई में उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में विकास हो रहा है? क्या जिस उद्देश्य के साथ उत्तराखंड बना था वो पूरा हुआ?
बात आगे बढ़ाएं उससे पहले श्रीनगर एनआईटी में हो रहे विरोध की वजहों को समझ लेना जरूरी है। दरअसल श्रीनगर एनआईटी में स्थाई कैंपस की मांग को लेकर अब छात्रों का गुस्सा सार्वजनिक हो चुका है। छात्र अब अस्थाई कैंपस की परेशानियों से ऊब चुके हैं। छात्र स्थाई कैंपस बनाने और तत्काल एनआईटी को मैदानी इलाके में शिफ्ट करने की मांग को लेकर लगातार धरना प्रदर्शन कर रहें हैं।
इस पूरे प्रदर्शन में जो चौंकाने वाली बात है वो है एनआईटी के मैदानी इलाके में शिफ्ट करने की मांग। छात्र बाकायदा इस संबंध में पोस्टर चिपका रहें हैं। इसके पीछे छात्रों का अपना तर्क है। छात्र कहते हैं कि पहाड़ मेें होने की वजह से कैंपस सेलेक्शन के लिए बड़ी कंपनियां नहीं आती।
एनआईटी को मैदान में शिफ्ट करने की मांग कई गंभीर सवाल खड़ी करती है। उस दौर में जब राज्य की सरकार पूरे दमखम के साथ पर्वतीय इलाकों से हो रहे पलायन को रोकने के लिए योजनाएं बना रही हो ऐसे में एक स्थापित संस्थान के छात्र मैदान में आना चाहते हैं। हाल ही में सरकार ने घोषणा की वो राज्य में पर्वतीय इलाकों से होने वाले पलायन को रोकने के लिए एक आयोग बनाएगी। मुख्यमंत्री पलायन कर चुके लोगों को वापस उनके गांव जाने और सेल्फी लेकर ट्वीट करने के लिए कह रहें हैं। ऐसे में युवा वर्ग पहाड़ों से मैदान में आने के लिए धरने दे रहा है।
श्रीनगर में छात्रों का आंदोलन सरकार के प्रयासों को पीछे खींचने वाला है। प्रयासों से पहले मौजूदा व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की चेतावनी भी है। सरकार भी ये समझती होगी कि श्रीनगर एनआईटी को मैदानी इलाके में शिफ्ट करने की मांग से क्या संदेश जा रहा है।