देहरादून, संवाददाता। इसे कहते हैं घर का जोगी जोगटा और बाहर का जोगी संत। जो संजीवनी बूटी हनुमान जी को भी नहीं मिली उसके लिए सूबे का स्वास्थ्य महकमा करोड़ों रुपये खर्च करने को तैयार बैठी है। जबकि जिस आयुर्वेद मे सलीके से काम कर राज्य केरल की तरह अपना नाम चमका सकता था उसकी दुर्गति हो रही है। सूबे की आवोहवा आयुर्वेद के लिए मुफीद है। मगर आलम ये है कि दून अस्पातल के ही आयुर्वेद सैक्शन में प्ंचकर्मा यूनिट मुलाजिमों के लिए तरस रही है। दून अस्पताल के पंचकर्मा में तैनात डॉक्टर की माने तो इस बाबत वे कई बार स्वास्थ्य महानिदेश को पत्र लिख चुके हैं। बावजूद इसके विभाग इस पर कोई अमल नहीं कर रहा है। दून असपताल में तैनात डॉक्टर की माने तो पंचकर्मा कर्मचारियों की तंगी के चलते उन्हे इलाज करने में भारी दिक्कतोंं का सामना करना पड़ता है। एक ओर केरल है जो दुनिया भर में अपने पंचकर्मा पद्धति के मशहूर हो चुका है और एक हमारा राज्य है जिसकी आबोहवा आयुर्वेद के माकूल होने के बावजूद इस क्षेत्र में फिसड़्डी हैं।