भगवानपुर- प्राइवेट कंपनियों में नौकरियों की सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि कंपनी अपने मुलाजिमो से मशीन की तरह काम लेती है। उसे सिर्फ मुनाफा चाहिए उसे मानवाधिकारों से कोई सरोकार नहीं।
हालांकि शोषण का पानी जब सिर से ऊपर बहने लगता है तो बेबस मुलाजिमों के हाथ मिल जाते हैं और इंकलाब के लिए मुट्ठियां तन जाती हैं।
हरिद्वार के सिडकुल में सत्यम फैक्ट्री प्रबंधन के खिलाफ कर्मचारी लामबंद हो रखे हैं तो जिले के औद्योगिक क्षेत्र भगवानपुर में भी एवरेस्ट कंपनी प्रबंधन के खिलाफ मुलाजिमों ने अपनी मुट्ठियां तानकर हडताल का ऐलान कर दिया है।
एवरेस्ट कंपनी की नीतियों के खिलाफ सड़क पर उतरे मुलाजिमों का कहना है कि कंपनी की सेवा करने के बाद भी मंहगाई के इस दौर में उनकी पगार 8 से 10 हजार है। जबकि अनुभव10 साल का हो गया है। वावजूद इसके कंपनी ने हमारी पगार नहीं बढ़ाई है। कंपनी ने आज तक अपने उस वादे पर अमल नहीं किया जो वादा उन्होने पिछली हड़ताल के दौरान किया था। आज भी कंपनी की कैंटीन में गंदा पानी और अशुद्ध भोजन परोसा जा रहा है।
हड़ताली मुलाजिमों का आरोप है कि कंपनी कम पगार में उनका तबादला देश के दूसरे राज्यों में जबरन करवा रही है। ताकि मुलाजिम वहां जा न सके और इसी बहाने से उसे नौकरी से बेदखल कर दिया जाए। हड़ताल पर आमादा मुलाजिमों का कहना है कि कम पगार पर तबादला हमें कतई मंजूर नहीं है। अगर एवरेस्ट कंपनी अपने अड़ियल रुख पर कायम रही तो वे भूख हड़ताल करेंगे और तब भी नहीं मानी तो कंपनी की नीतियों के खिलाफ आत्मदाह करने से भी नहीं हिचकेंगे।
उधर कंपनी प्रबंधन का कहना है कि तबादले तय नियमों के तहत ही किए जा रहे हैं। कंपनी के दूसरे राज्यों में मौजूद प्लांटों में भी अनुभवी कर्मचारियों की दरकार है। लिहाजा जहां जिसकी जरूरत कंपनी महसूस कर रही है उसे वहां भेजा जा रहा है।
बहरहाल सच क्या है ये तो जांच का विषय है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि मंहगाई के दौर में कम पगार मे दूसरे शहरों में मुलाजिमों को धकेला जाना क्या वाजिब है।