घनसाली(हर्षमणी उनियाल)- सूबे की सरकार कौशल विकास की बात करती है, युवाओं को स्वरोजगार अपनाने की नसीहत देती है। पहाड़ों से पलायन न हो इसके लिए पलायन आयोग बनाती है. किसान की आमदनी दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित करती है। बेरोजगार युवाओं से गांव में रोजगार पैदा कर मातृभूमि का कर्ज अदा करने की गुजारिश करती है।
लेकिन अगर घनसाली तहसील के श्रीकोट गांव के मेहनतकश युवा गौतम सिंह नेगी की हकीकत सुनोगे तो सिस्टम नकारा लगेगा और सरकार की बाते खोखली। जी हां, श्रीकोट गांव के युवक गौतम सिंह ने कई साल महानगरों के होटल में काम किया। लेकिन सरकार की बात सुनकर उसके मन में भी मातृभूमि की सेवा की ललक जगी और उसने भी गांव में स्वरोजगार अपनाकर जीवन चलाने की सोची।
अपनी पूंजी से युवक ने चमियाला में गोशाला खोली और दुग्ध व्यवसाय में हाथ आजमाया। लेकिन ताजा हाल ये हैं कि उसके धंधे को आगे बढ़ाने में अब सरकारी सिस्टम मदद के बजाए रोड़े अटका रहे हैं। युवक के पास गायों को पालने और उनके शेड को मजबूत बनाने के लिए पैसा नहीं है। युवक का कहना है कि उसे बैंक वाले लोन देने के लिए टरका रहे हैं। तहसील हो या पशुपालन विभाग कोई भी उसे वाजिब मदद देने को तैयार नहीं है। हरे चारे के बीज का ये हाल है कि जो बरसीम का बीज देहरादून में 100 रूपए किलो मिल जाता है वो उसे गांव में तीन सौ रुपए प्रति किलो की दर पर उपलब्ध हो रहा है।
जिन जनप्रतिनिधियो को वोट दिया अपना रहनुमा बनाया वो भी उसे निराश कर रहे हैं। गाय को माता कहकर गौ सेवा करने वाली सरकार के दौर में भी उसके पास मौजूद गाय भूखी हैं। भूसा मंगाने के लिए उसके पास की पूंजी खत्म हो गई है। बैक समेत तमाम सरकारी महकमों की दहलीजों पर चक्कर काट काट कर उसकी ऐड़ियां घिस गई हैं लेकिन कही कोई मदद नहीं। बिना भूसे की भूखी गाय और सरकारी सिस्टम की काहिली सुनाते हुए युवा की आंखे छलक पड़ती हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि इस युवा की आपबीती सुनकर कौन युवा पहाड़ो को स्वरोजगार के दम पर संवारने की हिम्मत जुटाएगा। जनाब स्वरोजगार से पहाड़ को मजबूत बनाना चाहते हो तो सरकारी सिस्टम के फजूल के तिलस्म को तोड़ों, वरना खाली भाषण से न तो सूबे की तस्वीर बदलेगी और न साहसी युवाओं की तकदीर।