प्रदीप रावत (रवांल्टा) उत्तरकाशी : क्या जानबूझकर उत्तरकाशी की नेगेटिव तस्वीर पेश की जा रही है ? क्या उत्तरकाशी को कोई बदनाम करना चाहता है ? बच्चियों का जन्म नहीं होने की जो रिपोर्ट सामने आई है। उसमें कुछ तो झोल है ? आखिर पूरी तस्वीर क्यों पेश नहीं की जा रही ? आशा की रिपोर्ट के अलावा एक और रिपोर्ट है। उसमें तस्वीर भी कुछ और है। सवाल उसी तस्वीर को लेकर खड़े हो रहे हैं। रिपोर्ट जो बता रही है। उससे सवाल और गंभीर हो जाते हैं। जिस रिपोर्ट पर इतना बवाल मचा हुआ है। उसका केवल एक पहलू पेश किया गया। जिस तरह से केवल नकारात्मक प्वांट को बिग ब्रेक्रिंग की तरह पेश किया गया। खबर केवल नेगेटिव प्वांइट पर बनी। 129 गांवों में केवल बेटियां जन्मी। 180 बेटियां, एक भी बेटा नहीं जन्मा। बात को दफन कर दिया गया, क्यों ? एक सवाल ये भी है कि क्या लापरवाही और जल्दबाजी में कुछ भी रिपोर्ट जारी कर दी जायेगी और किसीकी जवाबदेही भी तय नहीं ?
रिपोटों से समझें कहानी, पहली रिपोर्ट
अब आपको तीन-चार रिपोर्टों के बारे में बताते हैं। थोड़ा ध्यान से पढ़ेंगे तो खुद ही समझ में आ जाएगा कि कुछ तो गड़बड़ है। पहली रिपोर्ट ये है कि जो रिपोर्ट आशाओं ने भेजी है। उस पर स्वास्थ्य विभाग को ऐतराज है। विभाग का कहना है कि यह अधूरी रिपोर्ट है। इस तिमाही रिपोर्ट के अनुसार जिले में 622 डिलिवरी हुई। जिनमें 386 बेटे और 236 बेटियां पैदा हुई। ये एक रिपोर्ट के तथ्य हैं।
दूसरी रिपोर्ट
अब दूसरी रिपोर्ट की कुछ बातें आपको बताते हैं। ये हॉस्पिटल इंफार्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम और मातृ प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य के तहत कलेक्ट की गई तिमाही रिपोर्ट है। यही रिपोर्ट स्वास्थ्य महानिदेशालय को भेजी गई है। जबकि जो आशाओं की रिपोर्ट है, उसे पहले ब्रेक कर दिया गया। अब वापस रिपोर्ट पर आते हैं। उत्तराखंड स्वास्थ्य निदेशालय ने भारत सरकार को भेजी है। उसके अनुसार पिछले तीन माह के भीतर 949 प्रसव हुए हैं। इनमें 496 बेटे और 439 बेटियां हैं। जबकि 14 बच्चों को जन्म के दौरान मौत हो गई।
तीसरी रिपोर्ट
एक और महत्वपूर्ण बात ये है कि उत्तरकाशी जिले में पिछले तीन सालों में जन्म-मृत्यू दन में बड़ी कमी दर्ज की गई। लिंगानुपात की बात करें तो वो भी राष्ट्रीय औसत से बेहतर है। जिस तिमाही की रिपोर्ट पर बवाल मचा है, उस तिमाही में भी लिंगानुपात में कोई बड़ा अंतर नहीं है। जिले में प्रति 1000 बेटों पर 885 बेटियां हैं।
चौथी रिपोर्ट और पूरी सच्चाई
एक और चैंकाने वाली और खबरों में किए जा रहे दावों के उलट भी रिपोर्ट है। मातृ प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य की रिपोर्ट बताती है कि अप्रैल से जून तक 129 गांव ऐसे भी हैं, जहां 180 बेटियों का जन्म हुआ। इन गांवों में एक भी बेट को जन्म नहीं हुआ, फिर इस रिपोर्ट को सामने क्यों नहीं लाया गया। सवाल ये है कि क्या इनकी भी जांच की जाएगी ? जांच की जानी चाहिए। बेटिययों को मारना महापाप है। भ्रूण हत्या अपराध है, लेकिन सवालों को जवाब भी मिलना चाहिए…।