जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव को देखते हुए हर कोई बस यहीं दुआ मांग रहा है, कि समय रहते सब कुछ ठीक ठाक रहे लेकिन इन दुआओं के दौर के बीच शुक्रवार को एक मंदिर के धराशायी होने की खबर से लोगों की चिंताएं बढ़ गई हैं।
लोग ना सिर्फ जोशीमठ और अपने आशियानों को बचाने की दुआएं मांग रहे है, बल्कि आस्था का केंद्र ज्योतिर्मठ को भी बचाना चाहते हैं। जी हां, उत्तराखंड के प्रमुख नगरों में से एक नगर है जोशीमठ जो अपभ्रंश से पहले ज्योतिर्मठ के नाम से भी जाना जाता है जिसका अपना एक पौराणिक इतिहास भी है।
जोशीमठ ही वह स्थान है जहां आदि शंकराचार्य ने शहतूत के पेड़ के नीचे तप किया था और यहीं उन्हे ज्ञान प्राप्त हुआ था। यह कल्पवृक्ष जोशीमठ के पुराने शहर में स्थित है और वर्षभर सैकड़ों उपासक यहां आते रहते हैं। इस पेड़ के नीचे भगवान ज्योतिश्वर महादेव विराजमान है। जिनके मंदिर के एक भाग में आदि जगतगुरू शंकराचार्य जी द्वारा ज्योति जलाई गयी है जिसकी मान्यता है कि इस ज्योति के दर्शन मात्र से मानव जीवन का अंधकार समाप्त हो जाता है।
कहा जाता है कि बद्रीनाथ के विपरीत जोशीमठ पहला धाम या मठ है। जिसे शंकराचार्य ने स्थापित किया जब वे सनातन धर्म के सुधार के लिये निकले।
इसके साथ ही जोशीमठ का पौराणिक महत्व भी है। कहते हैं कि पहले जोशीमठ का क्षेत्र समुद्र में था। जब यहां पहाड़ उदित हुए तो जोशीमठ नरसिंहरूपी भगवान विष्णु की तपोभूमि बनी।
नरसिंहरूपी भगवान विष्णु का उद्य कैसे हुआ, इसका भी पौराणिक कथाओं में वर्णन किया गया है।
कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए कई जतन किये थे, जब होलिका प्रह्लाद को अग्नि में लेकर बैठी और उस वक्त भी प्रह्लाद नहीं जला, तब हिरण्यकश्यप ने एक लोहे के खंभे को गर्म कर लाल कर दिया और फिर प्रह्लाद को उसे गले लगाने को कहा। लेकिन एक बार फिर भगवान विष्णु प्रह्लाद को बचाने आ गये। खंभे से भगवान विष्णु नरसिंह के रूप में प्रकट हुए और प्रह्लाद को बचा लिया और हिरण्यकश्यपु को मार गिराया। लेकिन कहा जाता है कि है हिरण्यकश्यपु को मारने के बाद भी नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ था, जिसके बाद भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद ने उनके क्रोध को शांत करने के लिए कई दिनों तक जाप किया।
जिसके बाद उनका क्रोध शांत हुआ और फिर नृसिंह मंदिर में भगवान विष्णु के शांत स्वरूप के दर्शन होने लगे। बद्रीनाथ के कपाट बंद होने के बाद यहां पर भगवान विष्णु की शीतकालीन गद्दी की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार भगवान श्री नरसिंह जी के दर्शन उपरान्त भी बद्रीनाथ जी के दर्शनों की परम्परा है।