बेंगलुरू: दिल्ली, मुंबई में तो आपने गढ़वाली-कुमाऊंनी कार्यक्रम की धूम सुनी ही होगी। देखी भी होगी। उन कार्यक्रमों में मंच भी होता है। अपनी संस्कृति भी होती है। सबकुछ गढ़वाल-कुमाऊंनी जैसा, लेकिन जब खाने की बारी आती है, तो हम मैदानी कल्चर को नहीं भूल पाते। खाने के आइटम चाहे पहाड़ी हों, लेकिन खाने का तरीका देशी हो जाता है। बेंगलुरू में इस बार एक खास पहल हुई है। दक्षिण की राजधानी बेंगलुरू में ‘‘रसीलो पहाड़’’ में कुछ ऐसा रंग जमा कि वहां मौजूद हर शख्स पहाड़ के उन खेतों, उन चैकों में खो गया। जहां कभी वो पालती मारकर शादी या दूसरे आयोजनों में पत्तल में सपोड़-सपोड़ कर खाना खाया करते थे।
बेंगलुरू में एक नया ही उत्तराखंड का उदय
बेंगलुरू में एक नया ही उत्तराखंड का उदय होता नजर आ रहा है। दक्षिण की राजणानी में 21 को भी कुछ ऐसा ही नजारा दिखाई दिया। गढ़वाल-कुमाऊं के युवाओं ने प्रदेश की सबसे पुरानी उत्तराखंडी संस्था, उत्तराखंड सांस्कृतिक परिषद के साथ मिलकर बेंगलुरू में उत्तराखंड की पहचान कहे जाने वाले उत्तराखंड भवन में ‘‘रसीलो पहाड़’’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम ने लोगों को पहाड़ की याद दिला दी।
रसीलो पहाड़ में युवाओं ने परोसे पहाड़ी व्यंजन
रसीलो पहाड़ कार्यक्रम में लोगों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। कार्यक्रम की खाशियत यह रही कि लोगों को शुद्ध उत्तराखंडी व्यंजन परोसे गए। लोगों ने भी खूब आनंद लिया। भट्ट की चुड़कानी, आलू के गुटके, बड़ी की सब्जी और राई वाला रायता, मंडुए की रोटी और पूरी, भांगुल की चटनी खाते-खाते लोग चटकारे लगाते नजर आए। मीठे में झंगोरे की खीर ने रौनक ला दी। खाना बनाने का जिम्मा उत्तराखंड के ही शेफ देवेन्द्र रतूड़ी और उनके साथियों गौरव सिंह, देवेन्द्र सिंह और दीपक सिंह ने उठाया, जो बेंगलुरू में एक 5 सितारा होटल में कार्यरत हैं।
जमीन पर बैठकर पत्तलों में परोसा खाना
खास और बड़ी बात ये रही कि लोगों को खाना पत्तलों में परोसा गया और पहाड़ी परंपरा अनुसार नीचे बैठ कर खिलाया गया। कार्यक्रम में लोग पारंपरिक परिधानों में सजकर आए। कार्यक्रम में डॉक्टर दीपक जोशी, कर्नल दिव्य दर्शन पांडे जी (रिटायर्ड), डॉक्टर राजकुमार उपाध्याय, कैप्टेन राजेन्द्र सिंह जी (रिटायर्ड), कर्नल डिमरी (रिटायर्ड), कमांडर रतूड़ी (रिटायर्ड) ने भी उपस्थिति दर्ज करवाई और युवाओं को शानदार मुहिम के लिए बधाई दी।