आईआईटी रुड़की(IIT Roorkee ) के अध्ययन में एक बड़ा खुलासा हुआ है। इस अध्ययन में शिव मंदिरों (Ancient Shiva Temples) का प्राकृतिक संसाधनों के हॉटस्पॉट के साथ संरेखण पाया गया। प्राचीन भारतीय ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक विश्लेषण को जोड़ते हुए आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने अमृता विश्व विद्यापीठम (भारत) और उप्साला विश्वविद्यालय (स्वीडन) के सहयोग से एक ऐतिहासिक अध्ययन किया है। इसमें पाया गया कि देशभर के आठ प्रमुख शिव मंदिरों का स्थान ना केवल गहन आध्यात्मिक महत्व रखता है। बल्कि जल, ऊर्जा और खाद्य उत्पादकता के उच्च केंद्रों से भी मेल खाता है।
IIT Roorkee के अध्ययन में बड़ा खुलासा!
ह्यूमैनिटीज़ एंड सोशल साइंसेज कम्युनिकेशंस (नेचर पोर्टफोलियो) में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, उत्तराखंड के केदारनाथ(Kedarnath) से लेकर तमिलनाडु के रामेश्वरम तक ये मंदिर 79° पूर्वी देशांतर रेखा के आसपास स्थित शिव शक्ति अक्ष रेखा (SSAR) पर पाए गए। उपग्रह डेटा और पर्यावरणीय विश्लेषण से ये स्पष्ट हुआ कि ये संरेखण जल संसाधन उपलब्धता, कृषि उपज और नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता से समृद्ध क्षेत्रों में है।

शिव मंदिरों का पर्यावरणीय रहस्य चौकाने वाला
अध्ययन में बताया गया कि ये मंदिर केवल आस्था स्थल ही नहीं बल्कि पंचतत्वों (पंचभूत) के प्रतीक और संसाधन नियोजन के सभ्यतागत संकेतक भी रहे होंगे। प्रमुख लेखक भाबेश दास ने कहा कि प्राचीन मंदिर निर्माता पर्यावरण योजनाकार भी थे।
जिनके निर्णय भूमि, जल और ऊर्जा संसाधनों की गहरी समझ से प्रेरित थे। सह-अन्वेषक प्रो. थंगा राज चेलिया ने इसे एक उल्लेखनीय अंतःविषय सहयोग बताया, जो विरासत और जलवायु लचीलेपन के बीच सेतु का काम करता है।
ये निष्कर्ष दर्शाते हैं कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर में रणनीतिक पर्यावरणीय अंतर्दृष्टि निहित है। जिसे आज सतत विकास और जलवायु चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए पुनः लागू किया जा सकता है।