रामनगर – पिछले एक अर्से से महसूस किया जा रहा है कि हम पर्यावरण को बेहद हल्के में ले रहे हैं। नतीजतन विकास के दबाव में पर्यावरण बिखर रहा है और उसका असर जल, जंगल, जमीन और उसके पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहा है। ईकोलॉजिकल सिस्टम के बिगड़ने के चलते जहां जंगल के बाहर वन्य जीव संघर्ष में इजाफा हो रहा है वहीं जंगल के भीतर जानवरों को जिंदगी बचाने के लिए बुनियादी सहूलियतों की किल्लत हो गई है। ऐसे में जानवर न जंगल के भीतर महफूज हैं न जंगल के बाहर सुरक्षित।
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि उत्तराखंड जैसे राज्य में जहां बाघ बचाओ अभियान एक लंबे अर्से से चल रहा है वहां बाघों की शामत आई हुई है। आलम ये है कि सिर्फ 5 महीने मे ही उत्तराखंड में 9 बाघों की मौत हो चुकी है। जिनमें से तकरीबन आधा दर्जन बाघ तो कॉर्बेट पार्क और उसके आस पास के जंगलो में मारे गए हैं। कम वक्त में ज्यादा बाघों की मौत से जंगलात महकमें के माथे पर शिकन की लकीरें हैं या नहीं ये तो जिम्मेदार अधिककारी ही जाने। लेकिन बाघों की मौत के बारे में जंगल के जानकारों और जिम्मेदारों का तर्क है कि कॉर्बेट पार्क और उसके आस पास के जंगलो में उतनी जगह नही है जितनी बाघों की तादाद है।
बाघों की फितरत को समझने वालों की माने तो एक बाघ को जंगल के भीतर 21 किलोमीटर का दायरा चाहिए। लेकिन कार्बेट पार्क में एक बाघ के हिस्से में सिर्फ 17 किलोमीटर का स्पेस ही आ रहा है। ऐसे में जंगल के भीतर बाघ आपसी संघर्ष में मारे जा रहे हैं। इसके अलावा उसके लिए जरूरी दायरे में जंगल के भीतर जिंदगी के लिए जरूरी भोजन-पानी की भी किल्लत हो रही है। लिहाजा बाघ अपनी जिंदगी बचाने के लिए जंगल की सरहदों को लांघ रहा है और इंसानी बस्तियों में आदमखोर करार दिया जा रहा है। नतीजतन बाघ न तो जंगल के भीतर महफूज है और न जंगल के बाहर।
. 2015 की गणना के मुताबिक कार्बट पार्क में 224 बाघ थे। जबकि पार्क के आसपास के जंगलों में तकरीबन 100 बाघ मौजूद थे। जाहिर सी बात है कि पिछले दो साल मे इनकी तादाद बढ़ी होगी। हालांकि ये एक नजरिए से अच्छा संकेत है लेकिन बाघ की जिंदगी के लिए जरूरी बुनियादी जरूरतों के हिसाब से बुरा संकेत। तय है कि अगर जंगल नहीं बढ़ेगा तो बाघ यूं ही भोजन की तलाश मे जंगल की सरहदों को पार कर इंसानी बस्तियों में दाखिल होते रहेंगे और वन्यजीव संघर्ष में अपनी फजीहत कराते रहेंगे।
कुदरत से मुहब्बत करने वालों की आरोप है कि करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद अभी तक कार्बेट प्रशासन के पास उम्दा किस्म के बाघ बचाव उपकरण नहीं हैं। अब भी वन्यजीव संघर्ष के दौरान बाघ को बाबा आदम की तकनीक से ही काबू किया जा रहा है। गजब की बात तो ये है कि कार्बेट रिजर्व प्रशासन के पास बाघ को बेहोश करने के लिए मंझे हुए माहिर उस्ताद नहीं है। प्रशासन सामान्य वैटनरी डाक्टरों से ही काम चला रहा है। लिहाजा देखा जा रहा है कि इंसानी आबादी में आदमखोर करार दिया जा चुका या दहशत का पर्याय बन चुका बाघ काबू में आने के बाद या तो बीमार हो जाता है या फिर ईलाज के दौरान उसकी मौत हो जाती है। माना जा रहा कि एक्सपर्ट की कमी के चलते बाघ को बेहोशी का सही डोज नहीं मिल पाता ।
नारा बाघ बचाओं का और आलम ये है
- 1 मई 2017 को रामनगर फारेस्ट में एक बाघ का बच्चा घायल मिला जिसकी बाद में मौत हो गई
- कॉर्बेट पार्क के बिजरानी रेंज में 2 मई 2017 को एक बाघ का बच्चा मिला उसकी इलाज के दौरान मौत हो गई
- 14 अप्रेल 2017 रामनगर वन विभाग की देचोरी रेंज में एक व्यस्क बाघ शव मिला
- 31 मार्च 2017 को कॉर्बेट पार्क की ढिकाला जॉन में 10 साल के एक व्यस्क बाघ का शव मिला
- 16 मार्च 2017 को रामनगर तराई पछमी वन विभाग की बेलपड़ाव रेंज में एक बाघ ने दो लोगो को अपना निवाला बनाया। बाद में उसे वन विभाग ने पकड़ा, लेकिन रेस्क्यू सेंटर ले जाते समय उसकी भी मौत हो गई
- 22 फरवरी 2017 को रामनगर तराई वेस्ट के छोई गाँव में एक बाघ का शव मिला था
- 16 फरवरी 2017 को रामनगर तराई वेस्ट की बेलपडाव रेंज में बाघ का आधा सड़ा हुआ शव मिला था। (बाघों की मौत के ये आंकड़े सिर्फ कार्बेट नेशनल पार्क और उससे सटे जंगल और आबादी के हैं) रिपोर्ट – इफ्तखार हुसैन के साथ पंडित चंद्रबल्लभ फोंदणी