पर्यावरण के जानकार यूं ही नहीं कह रहे हैं कि अगला विश्वयुद्ध साफ पानी के लिए लड़ा जाएगा। इस बात में दम है।
दरअसल गंगा, यमुना, अलकनंदा, मंदाकिनी जैसे दर्जनों नदियों के मायके में पानी की बंदों के लिए जनता तरस रही है। सूबे के जनकवि डा.अतुल शर्मा की कविता की पक्तियां “नदी है पास-पास तो ये पानी दूर-दूर क्यों ?” राज्य में सच साबित हो रही है।
आपको ये जानकर अचरज होगा कि नदियों के मुल्क उत्तराखंड में जारी कुल 16 हजार पेयजल योजनाओं में 728 पेयजल योजनाओँ की हालत पतली है। जलसंस्थान के मार्फत चलने वाली 728 पेयजल योजनाओं के जलस्रोत तेजी से सूख रहे हैं। जिनमें 361 योजनाएं ऐसी हैं जिनके जल स्रोत 75 से 90 फीसदी तक सूख गए हैं। जिसके चलते उनके जल प्रवाह में कमी आई है और पेयजल योजना पर निर्भर जनता त्राहि माम त्राहि माम कर रही है।
हालांकि पेयजल पंत्री प्रकाश पंत ने जल स्रोतों के सूखने के कारण और उन्हे बचाने के उपाय के लिए स्वजल को सर्वे करने के आदेश दिए हैं। स्वजल तीन महीने में अपनी रिपोर्ट तैयार कर सौंप देगा। जिसके मुताबिक जल स्रोतों को बचाया जाएगा।
बहरहाल मौजूदा वक्त मं पानी के लिए उत्तराखंड के पहाड़ और मैदान दोनो तरस रहे हैं। तय है कि अगर जल्द ही पानी बचाने की मुहिम जल्द शुरू नहीं हुई तो पानी के लिए जनता तरस जाएगी। ऐसे में जरूरी है पार्यवरण को समझने की ताकि विकास की बात करने वाले जिंदा रह सकें।