देहरादून (ब्यूरो रिपोर्ट)- प्राचीन भारत के इतिहास पर गौर करना जरूरी है क्योंकि समझदार इतिहास से सबक लेते हैं और नासमझ महज घटना समझकर नजरअंदाज।
राजा नंद के मग्ध साम्राज्य को खत्म करने का प्रण लेकर उसे खत्म करने वाले अर्थशास्त्र के लेखक और महान कूटनीतिक आचार्य चाणाक्य ने राज और कूटनीति का सूत्र दिया था कि, जब राजा पर कोई कमी न निकले तो राजा के वजीर की इतनी कमियां गिनाना शुरू कर दो कि प्रजा में राजा के खिलाफ असंतोष पनप जाए।
उत्तराखंड के सियासी हलके में आजकल कुछ ऐसा ही दिख रहा है। अपना ही छद्म विपक्ष साल 2009 की सियासी हलचल का ताना बाना बुनने में मशरूफ दिखाई दे रहा है। 18 मार्च को राज्य की कमान संभालने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत पर निशाना साधने पर असफल रहने वाले अपने ही ध्वाजाधारकों ने अब त्रिवेंद्र रावत के करीबियों पर निशाना साधना शुरू कर दिया है।
चाणक्य नीति पर अमल करते हुए भक्तों ने सीएम रावत के बेहद करीबी और विश्वासपात्र माने जाने वाले राज्य के अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश पर आरोपों की इतनी बौछार कर दी है कि पैनी निगाह रखने वालों को साल 2009 का गुजरा दौर याद आने लगा है। इस निशानेबाजी के पीछे वही भगत हैं जिन्होंने 2009 में खंडूड़ी सरकार को सारंगी-सारंगी का राग अलाप कर बदनाम किया था।
सीएम बीसी खंडूड़ी पर सीधा वार करने में असफल होने पर हताशा में सारंगी-सारंगी चिल्ला चिल्ला कर बीसी खंडूड़ी को गद्दी से उतरने के लिए मजबूर कर दिया था। हालांकि आज तक सारंगी ने कितने घोटाले किए थे भगत कभी नहीं बता पाए। तब आरोपों की बौछार करने वाले आज तक ये भी नहीं बता पाए कि सारंगी ने ऐसे कितने संगीन गुनाह किए थे जिनके राजदार तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.सी.खंडूडी रहे थे।
सारंगी सारंगी चिल्लाने वालों के आरोप सिर्फ आरोप ही रहे। हालांकि वजीर पर बेतहाशा आरोपों के तीरों की बौछार ने बी.सी खंडूड़ी को सीएम का ताज उतारने के लिए मजबूर कर दिया। ठीक उसी तर्ज पर 6 महीने में ही ओमप्रकाश ने क्या घोटाला कर दिया ये भगत बता नहीं पा रहे हैं।
कौआ कान ले गया की तर्ज पर अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के बहाने टीएसआर पर सियासी हमले करना ही एकमात्र मकसद मालूम होता है। गौरतलब है कि सिटुर्जिया से लेकर टैक्सी घोटाला तक में कंठ तक डूबे रहे अफसरों के खिलाफ कभी इन भगतों ने मोर्चा नहीं खोला। सत्ता की मलाई चाटने वाले इस छद्म विपक्ष ने ‘राका’ नाम से मशहूर हुए नौकारशाह के खिलाफ भी न कभी जुबान खोली न कभी कलम चलाई।
मतलब उत्तराखंड की सियासी फिजां मे जो हवा बह रही है वो संकेत दे रही है कि राजा पर निशाना साधने में नाकामयाब रहने पर भगत वजीर पर बेतहाशा वार कर रहे हैं। ऐसे में ये समझ पाना जनता के लिए बेहद आसान है कि चाणक्य नीति अपनाकर एक बार फिर से वजीर को बदनाम करके राजा की प्रतिष्ठा को धूल में मिलाने का राजनैतिक षडयंत्र रचा जा रहा है।
यानि एक बार फिर साल 2009 का महौल बनाने मे मशगूल भगत सूबे में चाणक्य के राजनीति के सूत्र पर अमल कर रहे हैं