नाम-बिमला पड्यार बिष्ट। मायका-मंजोखी ढांगू। सुराल-पड्सार गांव (ऋषिकेश के पास)। पूर्व नवसेना अधिकारी योगंबर सिंह रावत ने मदर्स-डे पर फेसबुक पर एक छोटी, लेकिन भावुक पोस्ट लिखी है। उन्होंने लिखा कि कुछ दिनों पहले गढ़वाल सभा के युवा प्रकोष्ठ के सचिव संजय थपलियाल ने एक महिला को कोटद्वार अस्पताल में भर्ती था। जहां कुछ सामाजिक कार्यकर्ता बहिनों ने उनकी सेवा की। फिर वो अचानक गायब हो गई थीं। उन्होंने लिखा कि अपने साथी गोबिंद डंडरियाल के साथ मुख्य चिकित्सक को मिलने गए तो उपरोक्त महिला मुझे सीढ़ी पर मिल गई। मैंने जब उससे पूछा कि गढ़वाली आती है। तो हां में सिर हिला दिया। फिर उन्होंने अपने बारे में काफी कुछ बता दिया। महिला ने बातया कि वो अपने बच्चों को खोजते हुए कोटद्वार पहुंच गई और अब उसकी ये हालत हो गई।
मां की ममता कितनी महान है, इसे सिर्फ एक मां ही जान सकती है। लेकिन, लानत है उन बच्चों पर, जिनहोंने अपनी मां को इस तरह सड़क पर लाकर छोड़ दिया। मां तो बच्चों को नहीं भूले, लेकिन बच्चे मां को भूल गए। आज सोशल मीडिया पर हर कहीं मदर्स-डे के पोस्टर ही नजर आ रहे हैं। मैसेज कर मदर्स-डे की शुभकामनांए दी जा रही हैं। दिखावे की इस दुनिया में हर कोई बस दिखावा करता नजर आ रहा है। मां बस मां होती है। मां होने का एहसास वही जान सकतीं हैं। संताने अक्सर मां को भुला बैठती हैं, लेकिन मांए हमेशा अपने बच्चों को याद रखती हैं।
असल मायने में मदर्स-डे तब सही होगा, जब वृद्धा आश्रमों की माएं अपने घर, बपने बच्चों, अपने परिवार के साथ खुशी से जी रही होगी। जब किसी मां को बिमला देवी की तरह सड़कों पर नहीं भटकना पड़ेगा। एक तरफ हम मदर्स-डे मना रहे हैं। दूसरी ओर बिमला मां की तरह कई मांए अपने बेटों के लिए सड़कों पर भटक रही हैं। शुक्रिया पूर्व नवसेना अधिकारी योगंबर सिंह रावत और उनके साथियों को जिन्होंने मदर्स-डे पर सड़कों पर भटकती मां को अस्पताल पहुंचाया। अब वो उनको घर वापस जाने के के इंतजाम में जुटे हैं।
…प्रदीप रावत (रवांल्टा)