मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि इस घोटाले में कितना भी बड़ा अधिकारी या नेता शामिल होगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा। जरूरत पड़ी तो संबंधित आरोपियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई जाएगी। उधर, एनएच मुआवजा घोटाले की तर्ज पर इस घोटाले के तार भी पिछली कांग्रेस सरकार से जुड़ने से प्रदेश की सियासत में भूचाल तय माना जा रहा है।
सत्यापन में हजारों बोरे गायब
जांच में पाया गया कि रुद्रपुर राज्य भंडारण निगम के गोदाम संख्या-दो में राज्य पोषित योजना के चावल के 8382 बोरे और कस्टमाइज्ड मिल राइस (सीएमआर) योजना के 4318 बोरे समेत कुल 12,700 बोरों में से सत्यापन में महज 10,668 बोरे ही पाए गए। यानी 2032 बोरे कहां गए, इसका ब्योरा ही दर्ज नहीं था।
यही नहीं राज्य पोषित योजना से संबंधित चावल में 3680 बोरे ऐसे पाए गए, जिनमें अपठनीय दोहरी स्टेनसिल की छाप मिली। खाद्यान्न की गुणवत्ता भी घटिया पाई गई। इसी तरह की गड़बड़ियां किच्छा व काशीपुर के गोदामों में भी पाई गईं। वहां भी बोरों के सत्यापन में गड़बड़ी मिली।
चावल वितरण में कई अनियमितताएं पाई गईं। चावल वितरण के लिए आवंटित चालानों को केंद्र बाजपुर से बड़े पैमाने पर बगैर तिथि, बगैर ट्रक नंबर अंकित किए ही जारी किया गया। जांच में कई वाहनों को वास्तविक रूप से गंतव्य स्थल तक जाना भी नहीं पाया गया। जांच निष्कर्ष में यह साफ लिखा गया कि चावल का मूवमेंट किए जाने के लिए मूवमेंट चालान के प्रावधान की प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ। वरिष्ठ विपणन अधिकारियों ने राजनीतिक दबाव में प्रक्रिया का पालन नहीं करने की बात कही। उच्चाधिकारियों को इस मामले की जानकारी होने के बावजूद उन्होंने कोई कदम नहीं उठाया।
धान खरीद में जमकर अनियमितता
धान की नीलामी या खुली नीलामी से बोली लगाई जाने की व्यवस्था महज पांच से दस फीसद मामलों में ही अपनाई गई। 90 फीसद तक यानी धान की बड़ी मात्रा जो चावल मिल मालिकों ने सीधे किसानों से खरीद ली, उसे कच्चा आढ़ती के माध्यम से खरीद में दर्शाया गया। जबकि धान मंडी में नीलामी के लिए आया ही नहीं था।