21 सितंबर 2023 को बहुमत के साथ भारत की राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पास हो गया है। अब इसे स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा गया है। देश के राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही ये बिल कानून बन जाएगा। और देश में इसे नारी शक्ति वंदन अधिनियम के नाम से जाना जाएगा। नारी शक्ति वंदन अधिनियम के बाद महिलाओं को लोकसभा और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। पर क्या आप जानते हैं इस बिल को पास कराने की लड़ाई भारत में साल 1996 से चली आ रही है। कई राजनेताओं ने इसे पारित करने के लिए अपना प्रयास किया है। आइये जानते हैं महिला आरक्षण बिल को कब पहली बार पेश किया गया था।
1996 में पहली बार पेश हुआ बिल
12 सितंबर 1996, ये वही तारीख है जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में महिलाओं के लिए तैंतीस फीसदी आरक्षण के लिए बिल पेश किया गया। उस वक्त देश के प्रधानमंत्री थे एचडी देवगौड़ा और सरकार की यूनाइटेड फ्रंट की। इस फ्रंट में कुल 13 दल शामिल थे। देवगौड़ा सरकार ने इसे 81वें संविधान संशोधन के तौर पर पेश किया। जैसे ही ये बिल संसद के पटल पर रखा गया हंगामा मच गया। हालात ये हुए कि सरकार में शामिल कुछ दलों के साथ ही कई अन्य दलों के नेता इस बिल के विरोध में खुल कर सामने आ गए । आखिरकार भारी विरोध के चलते ये बिल स्टैंडिंग कमेटी को भेज दिया गया।
स्टैंडिंग कमेटी में थे 31 सदस्य
स्टैंडिंग कमेटी में 31 सदस्यों थे जिसकी अगुवाई सीपीआई की गीता मुखर्जी कर रहीं थीं। कमेटी में ममता बनर्जी, मीरा कुमार, सुमित्रा महाजन, नीतीश कुमार, शरद पवार, विजय भास्कर रेड्डी, सुषमा स्वराज, उमा भारती, गिरिजा व्यास, रामगोपाल योदव, सुशील कुमार शिंदे जैसे नेता शामिल थे।
कई दल थे महिला आरक्षण के खिलाफ
भले ही ये बिल स्टैंडिंग कमेटी के पास भेज दिया गया था लेकिन भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में महिलाओं की भागीदरी को मजबूत करने की नींव पड़ चुकी थी। दिलचस्प ये भी है कि देवगौड़ा सरकार जिन सहयोगी दलों के आधार पर चल रही थी उसे कांग्रेस बाहर से समर्थन दे रही थी। वहीं समाजवादी पार्टी और राजद इस सरकार के बड़े सहयोगी दल थे और ये दल महिला आरक्षण के खिलाफ थे। वैसे ऐसा नहीं है कि महिलाओं को आरक्षण देने की चर्चा इससे पहले नहीं हुई थी। बल्कि महिलाओ को आरक्षण देने की मांग तीन दशकों से उठती आई थी। साल 1975 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, तब ‘टूवर्ड्स इक्वैलिटी’ नाम की एक रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट में हर क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति का विवरण दिया गया था और आरक्षण पर भी बात की गई थी। रिपोर्ट तैयार करने वाली कमेटी में अधिकतर सदस्य आरक्षण के ख़िलाफ़ थे। वहीं महिलाएं चाहती थीं कि वो आरक्षण के रास्ते से नहीं बल्कि अपने बलबूते राजनीति में आएं। 1996 में स्टैंडिंग कमेटी को भेजे जाने के बाद ये बिल ठंडे बस्ते में चला गया।
1998 में फिर एनडीए की सरकार में बिल पेश
साल 1998 जब 12वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए की सरकार में तत्कालीन क़ानून मंत्री एन थंबीदुरई ने इस विधेयक को पेश किया। सरकार ने कोशिश की कि ये बिल पास हो जाए लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिली। इसके बाद एनडीए की सरकार ने दोबारा 13वीं लोकसभा में 1999 में इस विधेयक को पेश करने की कोशिश की। साल 2003 में एनडीए सरकार ने इस बिल पर सर्वसम्मती बनाने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाई।
शरद यादव ने महिला को कहा परकटी
कई ऐसे बयान भी सामने आए जिन्हे किसी जनप्रतिनिधि के मुंह से सुनना हैरानी भरा और हताशा भरा था। 1997 में ये बिल पटल पर आया तो इसे लेकर सांसद शरद यादव ने एक आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। शरद यादव ने कहा था,”कौन महिला है, कौन नहीं है। केवल छोटे बाल रखने वाली महिलाओं को इसका लाभ नहीं मिलने देंगे। परकटी महिलाएं हमारी महिलाओं के बारे में क्या समझेंगी और वो क्या सोचेंगी।”
जब बिल की कॉपी छीनकर फाड़ी
साल 1998 मे 13 जुलाई को जब इस बिल को लोकसभा में पेश किया गया तो राजद सांसद सुरेंद्र प्रसाद यादव ने स्पीकर जीएमसी बालयोगी के हाथ से बिल की कॉपी को छीनकर फाड़ दिया था। बाद में सुरेंद्र प्रसाद ने मीडिया को बयान दिया कि बीआर अंबेडकर ने उनके सपने में आकर ऐसा करने के लिए कहा था।
ममता बनर्जी ने पकड़ा सपा सांसद का कॉलर
ऐसा ही एक हंगामा 11 दिसंबर 1998 में भी हुआ जब एक बार फिर सदन की कार्रवाही में इस बिल को लाया गया, जैसे ही सदन शुरु हुआ समाजवादी पार्टी के सांसद दरोगा प्रसाद बिल की कॉपी फाड़ने के लिए स्पीकर की कुर्सी की ओर लपके, लेकिन बीच में ममता बनर्जी ने उन्हे रोक लिया। ममजा बनर्जी इतनी नाराज हो गईं कि उन्होंने दरोगा प्रसाद की कॉलर पकड़ ली और उन्हे लगभग खींचते हुए सदन से बाहर ले गईं।
मनमोहन सरकार में भी बिल पर हंगामा
वहीं 2004 में मनमोहन सरकार ने अपने बनने के चार साल बाद इस बिल पर सक्रियता दिखाई। 6 मई 2008 को फिर एक बार इस बिल को सदन में पेश किया। फिर वही हुआ हंगामा, खूब हंगामा हुआ। चूंकि मनमोहन सरकार भी गठबंधन सरकार थी लिहाजा बिल को फिर एक बार स्टैंडिंग कमेटी को भेजना पड़ा। हालांकि दिलचस्प ये था कि जो मनमोहन सरकार लोकसभा में इस मसले पर बहुमत का इंतजाम नहीं कर पा रही थी उसी सरकार ने राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल के लिए बहुमत जुटा लिया।
2010 में राज्यसभा में हुआ बिल पास
तारीख 9 मार्च 2010, मनमोहन सरकार ने महिला आरक्षण बिल राज्यसभा से पास करा लिया। ये आधी आबादी के लिए आधी जीत मिलने जैसा था। जिस दिन ये बिल राज्यसभा से पास हुआ उस दिन सदन की कार्रवाई के बाद महिला सांसदों की एक ग्रुप फोटो हुई। महिला नेताओं ने साझा तौर पर मीडिया से बात की। ये तस्वीर भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की शानदार तस्वीरों में से एक है जब अलग अलग पार्टियों की महिला नेता एक साथ एक मत और एक ही मकसद पर जीत का जश्न मनाती दिखीं।