सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र में देवेंद्र फणनवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला सुना दिया है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड की हरीश रावत सरकार की चर्चा भी होती रही। दरअसल कोर्ट ने भी 2016 में हरीश रावत सरकार के मामले में दिए गए फैसले के आधार पर ही अपना आज का फैसला सुनाया है।
उत्तराखंड में भी पैदा हुआ था संकट
19 मार्च 2016 में हरीश रावत सरकार के दौरान भी ऐसी ही संवैधानिक संकट जैसी स्थिती उत्पन्न हो गई थी। हरीश रावत सरकार के वित्त विधेयक पेश करने के दौरान उनके अपने ही विधायकों ने बगावत का बिगुल बजा दिया था। वित्त विधेयक का पास होना एक तरह से सदन में सरकार के बहुमत होने की गवाही भी है। वित्त विधेयक पेश होने के साथ ही विधानसभा अध्यक्ष ने उसे ध्वनि मत से पारित करार दिया। इस बीच सदन में बीजेपी के विधायक और कांग्रेस के बागी विधायक मत विभाजन कराने की मांग करते रहे। इसी बीच विधानसभा अध्यक्ष ने सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया।
वित्त विधेयक पेश होने के दौरान हंगामा
बीजेपी और कांग्रेस के नौ बागी विधायकों का आरोप था कि 70 विधायकों की विधानसभा में वित्त विधेयक के पेश होने के दौरान 67 विधायक मौजूद थे और ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 35 होता है जो कांग्रेस के पास नहीं बल्कि बीजेपी और कांग्रेस के बागी विधायकों के पास था। लिहाजा वित्त विधेयक पर मत विभाजन होता तो हरीश रावत सरकार अल्पमत में आ जाती। इस बात की शिकायत तत्कालीन राज्यपाल केके पॉल से की गई। राज्यपाल के सामने बीजेपी के 26 और कांग्रेस के बागी 9 विधायकों की परेड भी कराई गई।
रातों रात लग गया राष्ट्रपति शासन
इस दौरान केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार थी। रातों रात बीजेपी और कांग्रेस के बागी विधायक चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली के लिए रवाना हो गए। इसके बाद राज्यपाल ने बदले राजनीतिक हालात में हरीश रावत को 28 मार्च को फ्लोर पर बहुमत साबित करने के आदेश दिए। हालांकि उस वक्त भी आनन फानन में दिल्ली में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक बुलाकर उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के अनुशंसा राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पास भेज दी गई। रविवार 27 मार्च की सुबह उत्तराखंड में राज्य गठन के बाद पहली बार राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर दी। इसके साथ ही विधानसभा को निलंबित कर दिया गया।
लेकिन हरीश रावत लौट आए
हालांकि हरीश रावत ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 21 अप्रैल को नैनीताल हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति शासन हटाए जाने के आदेश दिए। हालांकि केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी गलत माना और सदन में फ्लोर टेस्ट के लिए कहा। इसके लिए 10 मई की तारीख तय की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने विश्वास मत पर मतदान के लिए अपना पर्यवेक्षक नियुक्त किया था। बंद लिफाफे में मतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 11 मई को पेश किया गया। यहां कोर्ट ने मतों की गिनती कराई। हरीश रावत सरकार के पक्ष में 33 मत थे जबकि विपक्ष में 28 मत पड़े थे। इस तरह हरीश रावत ने 55 दिनों के बाद एक बार फिर अपना बहुमत सदन में साबित कर दिखाया था। इसके साथ ही राज्य में 55 दिनों तक चले राष्ट्रपति शासन की समाप्ति की घोषणा भी हो गई।