हजूर! आपके अस्पताल कब तक पहाड़ में मर्सिया लिखते रहेंगे
ब्यूरो- पिछले सोलह साल मे उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों की पीड़ा कोई सरकार नहीं समझ पा रही है। सिर्फ चेहरे और झंडे-डंडे बदल रहे हैं इसके सिवा कुछ नहीं। कहीं से भी ऐसा महसूस नहीं हो रहा है कि नई सरकार कुछ कर रही है।
पहले भी पहाड़ी जिलों में सेहत के सवाल का उत्तर मर्सिया था और 16 साल बाद भी पहाड़ की बेबसी के शोकगीत रहमदिल अवाम के दिल को दहला रही है। सत्ता पसीज रही है या नहीं, इसकी आहट नहीं मिल पा रही है।
नए निजाम का खौंफ सूबे के सरकारी अस्पतालों में नहीं दिख रहा है। आलम ये है कि पहाड़ी जिलों में तो सरकारी अस्पतालों में सरकारी पगार पाने वाले ही मर्सिया लिख रहे हैं। न कोई टीस न कोई सबक।
लाखों की पत्थरों वाली इमारत में रहने वाले सरकारी हाकिमों के दिल भी पत्थरों के हो गए हैं। धरती के जिंदा भगवानों की संवेदनाओं ने खुदकुशी कर ली है। पहाड़ के अस्पतालों को देखकर महसूस हो रहा है कि वे भी उन मंदिर की मूरत की तरह पत्थर के हो गए हैं जिन्हे सिर्फ चढ़ावे के लिेए बनाया गया है।
ये सब इसलिए लिखा जा रहा है कि एक बार फिर टिहरी जिले की एक प्रसूता की गोद विरान हुई है। अस्पताल प्रशासन की काहिली से उसे सिर्फ आधे घंटे ही अपनी औलाद को दुलारने का सुख नसीब हुआ।
घटना है प्रतापनगर विधानसभा क्षेत्र के लंबगांव प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की। जहां पड़िया गांव की उमा देवी पत्नी राजेश रावत को (शनिवार के दिन) परिजन निजी वाहन से अस्पताल तक लाए लेकिन वहां लाकर भी उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ। क्योंकि जब प्रसूता अस्पताल पहुंची तो वहां ताले लटके हुए मिले।
न डाक्टर मिला न नर्स मिली, सब नदारद। परिजनों ने दोनो की खोज की लेकिन इस बीच प्रसव की अहसय पीड़ा झेलती प्रसूता को अस्पताल के बाहर ही जमीन पर बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ा।
न जच्चे को प्राथमिक उपचार मिला न बच्चे को। वक्त पर एंबुलेस न मिलने के चलते प्रसूता को अस्पताल के बाहर ही तड़फते हुए प्रसव की वेदना सहनी पड़ी। बेरहम, नकारा सरकार के निठ्ठले अस्पताल की गैरजिम्मेदाराना हरकत के चलते मां से उसका बच्चा हमेशा-हमेशा के लिए बिछड़ गया।
प्राथमिक उपचार न मिलने के चलते बच्चे की आधे घंटे में ही मौत हो गई। सबसे हैरानी की बात तो ये है कि सूबे की सरकार जिस 108 को जीवनरक्षक कहती है उसका इंतजार भी परिजनों ने दो घंटे तक किया। जब इंतजार के बाद भी 108 नहीं आई तब निजी वाहन का इंतजाम कर प्रसूता को लंबगांव अस्पताल पहुंचाया गया। रही सही कसर लंबगांव के सरकारी अस्पताल के काहिलपने ने पूरी कर दी।
हालांकि सीएमओ टिहरी ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जब तकलीफ हमेशा बिना न्यौता दिए आती है तो अस्पतालों को हर वक्त चौकन्ना नहीं रहना चाहिए।
सवाल ये भी है कि आखिर पहाड़ के हालात ही नहीं सुधरने थे तो उत्तराखंड राज्य के लिए गुजरे वक्त में खादी और खाकी के जुल्म क्यों सहे गए। सवाल ये भी है कि अटल जी के बनाए उत्तराखंड में इस गंभीर सवाल का जवाब प्रचंड बहुमत में कब मिलेगा।