देहरादून, फूल-फूल माई , फूल देई त्यौहार मानव व प्रकृति के पारस्परिक संबंधों का ऋतु पर्व है । जब पहाड़ जिंदे थे तब फूलों का ये त्यौहार भी जिंदा था। अब जब पहाड़ ही मरने लगे हैं तो क्या ऋतु क्या पर्व। बावजूद इसके रंगोली आंदोलन का आगाज करते हुए पहाड़ के पर्वों को बचाने की शानदार कोशिश हुई है। ये शुरुआत हुई है देहरादून के मैदान में छितरे हुए पहाड़ पर ताकि ऋतु-त्योहारों को बिसरी हुई आबादी की आने वाली नस्ल पहाड़ के वजूद को न केवल समझ सके बल्कि उस पर गर्व भी करे और मुहब्बत भी।
बहरहाल देहरादून में ‘रंगोली आंदोलन’ की रचनात्मक मुहिम के चलते हिमालयी पावन ऋतु पर्व फूल संक्रांद को नौनिहालों ने बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया । सबसे पहले बच्चों की सामूहिक टोली राज्यपाल के द्वार पर पहुंची जहां उन्होने राजभवन के द्वार पर एक साथ मिलकर रंग बिरंगे फूलों की बरसात की । महामहिम पर्वतीय परंपरानुसार तय वक़्त पर अपने द्वार पर बच्चों के स्वागत के लिए खड़े थे । इस बीच सभी बच्चे द्वार पर फूल बरसाते हुए ‘फूल-फूल माई दाल द्ये चावल द्ये खूब खूब खाजा’ गाते रहे ।
परम्परानुसार बच्चे यह तब तक गाते हैं जब तक उन्हें गृह स्वामी की ओर से उपहार स्वरूप कुछ भेंट मे नहीं मिल जाता है ।इसी बीच राज्यपाल कृष्णकांत पॉल ने भी परम्परानुसार बच्चों को अपने हाथ से एक एक मुट्ठी चावल व गेहूं भेंट मे दिया तत्पश्चात राज्यपाल ने नौनिहालों को गिफ्ट पैकेट भी दिए ।राजभवन के बाद सभी बच्चे 50 बच्चे मुख्यमंत्री आवास पहुंचे जहां उन्होने कार्यवाहक मुख्यमंत्री हरीश रावत के द्वार पर भी पुष्प वर्षा की मुख्यमंत्री हरीश रावत एवं उनकी पत्नी रेणुका रावत ने द्वार पर खड़े बालभगवान स्वरूप बच्चों को परंपरानुसार गेहूं, गुड और चावल के अलावा अन्य उपहार भेंट किए । इसके बाद रंगोली आंदोलन से जुड़े बच्चे पहाड़ की यादों को जिंदा करते हुए कई महानुभावों जिनमें एसएसपी से लेकर पूर्व विधानसभा स्पीकर हरबंश कपूर के घर आंगनों में शामिल हुए। मैदान में अपने पहाड़ की खूबियों को याद करते बच्चो ने फूल बिखराते हुए उनके जीवन में खुशहाली की कामना की और अपनी परंपराओं को जिंदा रखने की जानदार कोशिश की।
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