देहरादून- सूबे के शिक्षा एवं खेल मंत्री अरविंद पांडे के बेबाक बयान ने एक बार फिर से टीएसआर सरकार को असहज कर दिया है।
राज्य में मौजूद खेल संघों के कई पदाधिकारियों पर 376 जैसी संगीन धारा के तहत मुकदमा दर्ज करवाने जैसा गंभीर बयान देकर मंत्री जी ने सरकार को उस जगह ला खड़ा कर दिया है जहां कहा जाने लगा है कि बात निकली है तो दूर तलक जाएगी।
हालांकि ये पहला मामला नहीं जब अरविंद पांडे ने बेबाकी से बयान देकर सरकार को बेकफुट पर धकेला हो। इससे पहले भी अरविंद पांडे भावना में बहकर बयान दे चुके हैं। कभी खुद को शक्तिमान नहीं हू कह कर बच्चों को बचने की नसीहत दी तो, कभी भरी क्लास में विज्ञान की शिक्षिका से गणित का गलत सवाल कर दिया, तो कभी पंचायत महाकुंभ में जन प्रतिनिधियों को भूख-प्यास सहन करने की नसीहत दी थी।
बहरहाल इस बार खेल मंत्री का ये दावा करना कि उनके पास खेल संघों के पदाधिकारियों के काले कारनामों के सबूत हैं ने टीएसआर सरकार को भीष्म पितामहा बना दिया है। बीते रोज सीएम त्रिवेंद्र रावत खेल मंत्री से बात करने और पीडिताओं को शिकायत दर्ज करवाने की सलाह दे चुके हैं जबकि आज रावत कैबिनेट के कद्दावर मंत्री प्रकाश पंत अरविंद पांडे के बयान वाले सवाल पर ही असहज हो गए। हालांकि उन्होंने भी जवाब सधे अंदाज में दिया है।
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जब मंत्री जी मीडिया से दावा कर चुके हैं कि 376 के तहत मय सबूत मुकदमा दर्ज होगा तो फिर सरकार कार्रवाई से हिचक क्यों रही है? क्या जीरो टॉलरेंस के दौर में भी सरकार को बहुत कुछ सोचने की जरूरत पड़ रही है? आखिर मुख्यमंत्री अपने खेल मंत्री को तलब क्यों नहीं कर रहे हैं और मंत्री जी क्यों नहीं खेल संघों पर हावी उन दुःश्चरित्र दुःशासनों को बेनकाब करने का दम दिखा पा रहे हैं? क्योंकि जुर्म की जानकारी होकर जुर्म को छिपाना जुर्म से बड़ा जुर्म है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि मंत्री जी ने सिर्फ सुर्खियों में रहने और वाह वाही बटोरने के लिए संगीन बयान दिया हो, और अगर ऐसा है तो फिर वो खेल संघ चुपचाप खामोश क्यों हैं जिनके दामन पर मंत्री जी ने 376 जैसा कीचड़ उछाल दिया है? इसका मतलब तो साफ है कि दाल में काला नहीं पूरी दाल ही काली है !