काशीपुर,संवाददाता – उधमसिंहनगर के काशीपुर को पांडवों की नगरी माना जाता है। काशीपुर में वैसे तो कई बड़ी नदियाँ हैं लेकिन कुछ नदिया ऐसी भी हैं जिनका वजूद या तो मिट चुका है या औद्योगिक प्रदूषण के चलते मिटने की कगार पर है। बावजूद इसके, अब न तो कोई पानी के मोल समझ रहा है और न नदियों के वजूद को।
काशीपुर की ढेला नदी कभी स्वणभद्रिका के नाम से पुकारी जाती थी। कहते हैं आज भी इसकी बालू में सोने सी चमक दिखती है। लेकिन अब आलम ये है कि कभी की स्वणभद्रिका सोने की नदी से बिन पानी के ढेला नदी में बदल गई है । वहीं दूसरी गंगा जिसे अब महादेव नहर के नाम से जाना जाता है। जिसके बराबर में भीम द्वारा स्थापित मोटेश्वर महादेव स्थित हैं दोनों का वजूद बिना पानी के मिट गया है।
उसकी सबसे बड़ी वजह नदियों में गिराई जा रही गंदगी मानी जा रही है। स्थानीय जनता काशीपुर के उद्योगों को इन नदियों के कत्ल का कसूरवार ठहरा रही है। लोगों का कहना है कि पेपर मिल हो या फिर दूसरे उद्योग दोनों नदियों को विलुप्त करने में लगे हैं । कल तक जिन नदियों का पानी पिया जाता था आज वहीँ नदियां जहरीली हो गयी हैं।
जनता की मांग है कि उद्योंगों पर प्रदूषण विभाग नकेल कसे और उन्हें प्रदूषित जल सीधा नदियों में डालने से रोकने के लिए मजबूर करे। तभी नदियों का वजूद महफूज रह सकता है। हालांकि स्थानीय प्रशासन की माने तो प्रदूषण की शिकायत पाए जाने पर संबन्धित उद्योगों को काबू किया जाएगा और जो उद्योग लापरवाही बरतेंगे उन्हें कार्यवाही का सबक सिखाया जाएगा।
प्रशासन जल प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के कान उमेठेगा या नहीं ये तो वक्त ही बताएगा फिलहाल काशीपुर की दोनों ऐतिहासिक नदी कचरे की नदी में तब्दील हैं। हालांकि स्थानीय लोगों की केंद्र सरकार से मांग है कि अगर गंगा को बचाने की कवायद की जा रही है तो सहायक नदियों की सुध भी लेनी चाहिए।
देखना है कि कालेधन को बंद करने के लिए आम जनता को कतार में लगाने वाली सरकार सहायक नदियों के साथ क्या सलूक करती है।