आज ‘हॉकी के जादूगर’ मेजर ध्यानचंद का 114वां जन्मदिन है. भारत के महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद ने भारत को 3 ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक दिलवाया था. उनकी गोल करने की अद्भुत क्षमताओं से विपक्षी टीमें भी अक्सर हैरान रह जाती थीं. उनके बारे में यहां तक कहा जाता था कि गेंद उनकी हॉकी से चिपक जाती है. उनके सम्मान में ही 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन राष्ट्रपति, राजीव गांधी खेल रत्न, अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार से खिलाड़ियों को सम्मानित करते हैं.
जब ठुकराया हिटलर का ऑफर
हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का खेल जिसने भी देखा वह उनका मुरीद हो गया. ध्यानचंद को चाहने वाले उन्हें ‘दद्दा’ भी कहकर पुकारा करते थे. दद्दा के खेल का जादू ऐसा था जिसने जर्मन तानाशाह हिटलर तक को अपना दीवाना बना दिया था. मेजर का खेल देखने बाद हिटलर ने उनको जर्मन सेना में पद ऑफर किया था ,जिसे इस ‘भारतरत्न’ ने ठुकरा दिया था. मेजर साहब ने हिटलर से बड़ी ही विनम्रता से कहा, ‘मैंने भारत का नमक खाया है. मैं भारतीय हूं और भारत के लिए ही खेलूंगा.’ उस समय ध्यानचंद लांस नायक थे.
आइए एक नजर डालते हैं, उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प आंकड़ों पर-
उनके बेहतरीन खेल प्रदर्शन को देखते हुए ब्रिटिश गवर्मेंट ने उन्हें मेजर बनाया था
ध्यानचंद ने 16 साल की उम्र में भारतीय सेना ज्वाइन कर ली थी. इसी समय उन्होंने हॉकी खेलना भी शुरू किया. ध्यानचंद ब्रिटिश आर्मी में लांस नायक थे. उनके बेहतरीन खेल प्रदर्शन को देखते हुए ब्रिटिश गवर्मेंट ने उन्हें मेजर बनाया था.
23 वर्ष की उम्र में ध्यानचंद 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में पहली बार हिस्सा लिया. यहां चार मैचों में भारतीय टीम ने 23 गोल किए. ध्यानचंद 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक में सबसे ज्यादा गोल (14) करने वाले खिलाड़ी थे. भारत की जीत पर एर रिपोर्ट में कहा गया, यह हॉकी का खेल नहीं बल्कि एक जादू है. ध्यान चंद हॉकी के जादूगर हैं.
दोनों भाइयों को कहा गया हॉकी ट्वीन्स
1932 के ओलंपिक में भारत ने अमेरिका को 24-1 से, जापान को 11-1 से हराया. ध्यान चंद ने 12 गोल किए जबकि उनके भाई रूप सिंह ने 35 में से 13 गोल किए. इसके बाद दोनों भाइयों को हॉकी ट्वीन्स कहा गया.
एक बार ध्यान चंद एक मैच में कोई भी गोल नहीं कर पाए. उन्होंने तर्क दिया कि गोल पोस्ट छोटा है. उस वक्त हर व्यक्ति चकित रह गया जब गोल पोस्ट को नापा गया और वह अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुरूप नहीं पाया गया.
हॉकी स्टेडियम आइए, भारतीय हॉकी का जादूगर एक्शन में है
1936 के बर्लिन ओलंपिक में, हॉकी स्टेडियम में कोई अन्य प्रतिस्पर्धा हो रही थी. ध्यानचंद भी वहां बैठे थे. अगले दिन जर्मन न्यूजपेपर की सुर्खियां थीं- हॉकी स्टेडियम आइए, भारतीय हॉकी का जादूगर एक्शन में है.
1948 में 43 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कहा
ध्यानचंद ने 1928 में एम्सटर्डम, 1932 में लॉस एंजेलिस और 1936 के बर्लिन ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का नेतृत्व किया और भारत को स्वर्ण पदक दिलाया. 1948 में 43 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कहा.
वह ऐसे गोल करते हैं जैसे क्रिकेट में रन बन रहे हों
1935 में ऑस्ट्रेलिया के सर डान ब्रैडमैन और ध्यानचंद एडीलेड में मिले. ध्यानचंद का खेल देखने के बाद महान क्रिकेटर ब्रैडमैन ने कहा था, वह ऐसे गोल करते हैं जैसे क्रिकेट में रन बन रहे हों.
22 साल (1926-48) के अपने करियर में ध्यानचंद ने 400 गोल किए.
नीदरलैंड हॉकी प्रशासन ने एक बार उनकी हॉकी चेक की थी और यह देखा था कि ध्यानचंद की हॉकी स्टिक पर कहीं कोई चुंबक तो नहीं लगा है.
इस अंदाज में हुई थी ध्यानचंद की आखिरी विदाई
ध्यानचंद का निधन 3 दिसम्बर, 1979 को 74 साल की उम्र में हुआ था. जैसे ही उनकी मृत्यु की खबर फैली. झांसी में हॉकी के प्रेमियों ने उनके घर में इकट्ठा होना शुरू कर दिया. सभी अपने चहेते खिलाड़ी की आखिरी झलक पाना चाहते थे. ऐसा कहा जाता है कि उनके अंतिम संस्कार में करीब 1,00,000 लोग शामिल हुए थे. लोग कारों पर, इमारतों के शीर्ष पर खड़े थे. हालांकि इसमें किसी राजनेता को शामिल होने की अनुमति नहीं थी. झांसी शहर ने फैसला किया कि दद्दा का किसी अन्य व्यक्ति की तरह अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा, लिहाजा उनका अंतिम संस्कार एक हॉकी फील्ड में होगा.
राज्य सरकार ने हस्तक्षेप किया और अनुमति देने से इनकार किया और हॉकी फील्ड में शव को रोकने के लिए पुलिस को भेज दिया. ऐसे वक्त में सेना ने हस्तक्षेप किया और पुलिस को उनके आदेशों को चलाने से रोक दिया. बाद में हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का पूरा राज्य सम्मान के साथ हीरोज हॉकी मैदान में अंतिम संस्कार किया गया था.