डेस्क- सत्र बहिष्कार को लेकर भाजपा और काँग्रेस में घमासान तेज हो गया है। भाजपा जहाँ काँग्रेस पर गैरसैंण सत्र के बाबत नौटंकी करार दे रही है वहीं काँग्रेस के नेता भाजपा पर गैरसैंण मुद्दे को हाशिये पर रखने का आरोप लगा रहे हैं। काँग्रेस के उपाध्यक्ष ने तो यह तक कह डाला कि इस सत्र बहिष्कार नहीं बल्कि भाजपा ने गैरसैंण से भागने का काम किया है।
गैरसैंण सत्र के बाबत काँग्रेस के उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट ने भाजपा पर सीधे हमला बालते हुए कहा कि इसे सत्र बहिष्कार नही बल्कि सत्र से भागना कहते है। उन्होंने कहा कि भाजपा गैरसैंण में स्थायी राजधानी को लेकर कतई गंभीर नही है। काँग्र्रेस का प्रयास गैरसैंण भवन के अलावा अन्य चींजो की व्यवस्था भी है। उन्होंने कहा कि भाजपा की केन्द्र में सरकार है तो गैरसैंण मुद्दे पर केन्द्र को तत्काल दस हजार करोड़ रूपये जारी करने चाहिए। जोत सिंह ने भाजपा पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया है। जबकि भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विनय गोयल ने कहा कि गैरसैंण में सत्र रखना काँग्रेस की नौटंकी भर है। वे गैरसैंण के मुद्दे पर कभी भी गंभीर नही रहे। उन्होंने कहा कि जब सत्र में भाजपा ने काँग्रेस से गैरसैंण स्थिति स्पष्ट करने को कहा और 310 के तहत चर्चा
कराने की बात कहीं तो काँग्र्रेस मुकर गयी। ऐसे में सत्र बहिष्कार के अलावा भाजपा के पास और कोई और चारा नही था। जबकि काँग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता मथुरा दत जोशी ने कहा कि भाजपा गैरसैंण और सत्र को लेकर कभी भी गंभीर नही थी। उन्होंने कहा कि सत्र में चर्चा की बजाय बहिष्कार पूर्व नियोजित था। भाजपा का संख्या बल भी यह दर्शाता है कि वह गैरसैंण के मुद्दे को लेकर गंभीर नही थे।
कराने की बात कहीं तो काँग्र्रेस मुकर गयी। ऐसे में सत्र बहिष्कार के अलावा भाजपा के पास और कोई और चारा नही था। जबकि काँग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता मथुरा दत जोशी ने कहा कि भाजपा गैरसैंण और सत्र को लेकर कभी भी गंभीर नही थी। उन्होंने कहा कि सत्र में चर्चा की बजाय बहिष्कार पूर्व नियोजित था। भाजपा का संख्या बल भी यह दर्शाता है कि वह गैरसैंण के मुद्दे को लेकर गंभीर नही थे।
सियासत के माहिर जनभावनाओं की फुटबॉल कैसे बनाते हैं गैरसैंण मसले को समझकर आसानी से लगाया जा सकता है।सूबे की पहली अंतिरम भाजपा सरकार ने जनभावनाओं को तिलांजलि देते हुए राजधानी चयन आयोग बनाया तो सूबे की दूसरी निर्वाचित कांग्रेस सरकार ने उस राजधानी चयन आयोग का कार्यकाल बढ़ा दिया। बावजूद इसके आयोग ने अपनी रिपोर्ट में क्या लिखा आम जनता को अब तक पता ही नही चल पाया जबकि राज्य बने 16 साल हो गए हैं और आयोग को अपनी रिपोर्ट सौंपे तकरीबन 5 साल का वक्त बीत चुका है। ऐसे में आसानी से समझा जा सकता है कि जनता के लिए जनता द्वारा चुनी गई सरकार में जनता की जनभावनाओं की क्या दुर्दशा होती है।