गैरसैंण पर बड़ा निर्णय लेने के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का आभार व्यक्त करता हूं. उन्होंने पृथक राज्य की अवधारणा के अनुरूप यह ऐतिहासिक फैसला लिया है। अब गैरसैंण जिले का भी शीघ्र गठन होना चाहिए, ताकि भावी अवस्थापना, विकास तथा पूर्ण राजधानी के संकल्प को अमलीजामा पहनाया जा सके प्रत्येक राजधानी का स्वाभाविक रूप से एक प्रशासनिक जिला होता है, माननीय मुख्यमंत्री जी की घोषणा के बाद जिसका गठन आवश्यक है।
पृथक राज्य आंदोलन में 42 से अधिक शहादतें हुई, मुलायम सिंह यादव के इशारे पर मुजफ्फरनगर जैसा वीभत्स कांड इस राज्य ने सहा, गैरसैंण राजधानी के लिये बाबा मोहन उत्तराखंडी के बलिदान के बदौलत पर्वतीय प्रदेश की पर्वतीय राजधानी का संकल्प मजबूती से आगे बढ़ा है और एक दिन गैरसैंण राज्य की स्थाई राजधानी के रूप में स्थान लेगा। मुझे याद है 2004 में गैरसैंण में राजधानी आंदोलन को कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने किस तरह कुचलने की कोशिश की थी। महिला कार्यकर्ताओं का दमन गैरसैंण भूला नहीं है।
गैरसैण गढ़वाल कुमाऊं के मध्य का भूभाग है। चमोली के कर्णप्रयाग- गैरसैण क्षेत्र, पौड़ी के दूधातोली क्षेत्र व अल्मोड़ा के चौखुटिया-द्वाराहाट-मासी तक का क्षेत्र गैरसैंण जिले के अंतर्गत सम्मिलित किया जाये, इन क्षेत्रों का अनेक बार अध्ययन भी हो चुका है। मुख्यमंत्री जी द्वारा भावी चोरड़ा झील का स्थलीय निरीक्षण, आगामी सुविधाओं को लेकर की गई बैठक उनके मजबूत संकल्प का परिचायक है।
एक राज्य आंदोलनकारी व गैरसैंण राजधानी के आंदोलन का कार्यकर्ता होने के नाते हृदय से मुख्यमंत्री जी को साधुवाद दूंगा, जिन्होंने जन भावनाओं के अनुरूप ऐतिहासिक और साहसिक निर्णय लिया है और सही मायनों में अब पर्वतीय माइंडसेट का विकास मॉडल आगे बढ़ेगा।