उत्तरकाशी, सुनील मोर्य – जोशियाड़ा,लदाड़ी और विकास भवन की करीब 15 हजार की आबादी को जोड़ने वाला मणिकर्णिका झूला पुल आपदा के पांच साल बाद भी नही बन पाया है। जिला प्रशासन और पुल बनाने वाली एनबीसीसी की कंपनी के लापरवाह रवैये का खमियाजा उन व्यपारियो और स्थानीय लोगो को भुगतना पड़ रहा जिनका कारोबार पुल बहने के बाद से ठप्प पड़ा है। झूला पुल के कार्य में तेजी लाने की मांग को लेकर स्थानीय लोगो द्वारा आंदोलन करने पर भी पुल का काम कछुवा गति से चल रहा है।
दरअसल साल 2012 की प्रलयकारी बाढ़ में जोशियाड़ा,लदाड़ी,विकास भवन को जिला मुख्यालय से जोड़ने वाला मणिकर्णिका झूला पुल बह गया था। झूल पुल बहने के बाद जोशियाड़ा बाजार के व्यापारियों का कारोबार ठप्प पड़ने के साथ-साथ छेत्र के लोगो का जिला मुख्यालय से सम्पर्क कट गया । तब प्रशासन ने बाढ़ में ध्वस्त हुए मणिकर्णिका झूला पुल की जगह आपदा मद से NBCC को चार साल पहले नए झूला पुल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी बावजूद इसके झूला पुल आज तक तैयार नही हुआ।
एनबीसीसी कम्पनी ने पुल निर्माण में कछुवा चाल से काम किया जो आज तक जारी है। जिसके चलते पुल चार साल बाद भी पूरा नहीं बन पाया। ताज्जुब की बात तो ये है कि प्रशासन ने पुल निर्माण में तेजी लाने के लिए कई बार कार्यदायी संस्था को हिदायत देते हुए नोटिस भेजे। बावजूद इसके न एनबीसी को फर्क पड़ा न उस सरकार को जिसने कंपनी पर भंरोसा किया और नकारा कंपनी को जिम्मेदारी सौंपी। फर्क पड़ा तो उस जोशियाड़ा और लदाड़ी क्षेत्र की जनता को जिसके आपदा के जख्म झूला पुल की शक्ल में अब तक हरे हैं।
ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि आखिर सरकार ने कार्यदायी संस्था के साथ जो करार किया था उसके मुताबिक कंपनी को काली सूची मे डालकर बड़ा एक्शन क्यों नहीं लिया जाता ताकि फिर से कोई कंपनी जनता को न छले। कहीं ऐसा तो नहीं कि इसके पीछे पुल निर्माण की लागात बढाने का खेल खेला जा रहा हो।