देहरादून : उत्तराखंड में बेरोजगारी का आलम इस कदर युवाओं पर हावी है कि युवाओं को अब जान की भी परवाह नीहीं है। राज्य में रोजगार की स्थिति इस कदर बदतर है कि युवाओं को अब आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। जी हां और ये बेरोजगारी का आलम उस वक्त और अधिक बढ़ जाता है जब राज्य में कोई भर्ती निकली हो…युवाओं ने दिन रात एक कर मेहनत की हो और परीक्षा के दिन नकल हो जाए और भर्ती परीक्षा रद्द हो जाए।ये वाक्या युवाओं के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा था। लेकिन अब युवा भर्ती परीक्षा दोबारा कराने के लिए जान देने पर उतारु हैं.
भर्ती परीक्षा रद्द कराकर फिर से कराने की मांग
जी हां ताजा मामला देहरादून का है जहां भर्ती परीक्षा को रद्द कराकर फिर से कराने की मांग को लेकर बेरोज़गार संघटन के दो कार्यकर्ता बॉबी पंवार और पीसी भट्ट पानी की टंकी पर चढ़ गए और त्रिवेंद्र सरकार के खिलाफ ज़ोरदार नारेबाज़ी की। वहीं सूचना पाकर मौके पर एसपी सिटी, एसडीआरएफ सहित कई थानों की पुलिस पहुंची। पुलिस टीम ने लाख समझाया लेकिन वो नहीं माने। युवकों की मांग है कि जब तक फॉरेस्ट गार्ड परीक्षा को निरस्त नहीं किया जाता, वह टंकी से नहीं उतरेंगे।
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग को नहीं मिली गड़बड़ी की जांच रिपोर्ट
बता दें कि प्रदेश में फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा में हुई गड़बड़ी की रिपोर्ट अब तक उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग को नहीं मिली है। आयोग के सचिव संतोष बड़ोनी का कहना है किरिपोर्ट मिलने के बाद ही परीक्षा को लेकर कोई फैसला लिया जाएगा। अभी फिलहाल किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं।
परीक्षा में पेपर लीक होने की पुष्टि हो चुकी-प्रदर्शनकारी
वहीं आयोग सचिव ने बताया कि उत्तराखंड बेरोजगार संगठन की ओर से फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा को निरस्त करने की मांग की जा रही है। मांग को लेकर उम्मीदवारों ने आयोग के कार्यालय में प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि परीक्षा में पेपर लीक होने की पुष्टि हो चुकी है और भर्ती परीक्षा को निरस्त किया जाए। बताया कि उम्मीदवारों का कहना है कि इस मामले की जांच कराकर परिणाम घोषित किया जाए। कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भर्ती परीक्षाओं को निरस्त करने के संबंध में यह सिद्धांत दिया है कि भर्ती निरस्त करने का निर्णय युक्ति युक्त होना चाहिए। जिसे गड़बड़ी के परिणाम के आधार पर किया जाना चाहिए।
बता दें कि प्रदर्शन कर रहे युवाओं की मांग है कि भर्ती परीक्षा निरस्त कर 100 दिन में फिर से कराई जाए। इस पर सचिव का कहना है कि एक अपरिपक्व फैसला लेकर अगर परीक्षा निरस्त भी कर दी जाए, तो इस निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। परीक्षा निरस्त हुई तो लंबी कानूनी प्रक्रिया में फंस सकती है। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने प्रदर्शनकारियों को जांच का भरोसा दिया और फैसला आने का इंतजार करने को कहा।