उत्तराखंड में पहली बार वन्य जीवों के साथ ही बाघों की गणना भी की जाएगी। इसके लिए तैयारियां शुरू हो गईं हैं। अब तक आमतौर पर वन्य जीवों में गुलदार, भालू, मोनाल, लंगूर, जंगली सूअर और भरल जैसे वन्य जीवों की ही गणना होती रही है लेकिन ये पहली बार होगा कि अन्य वन्य जीवों के साथ ही बाघों की गणना भी की जाएगी। ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि वर्ष 2016 में केदारनाथ रेंज और चमोली के कुछ इलाकों में बाघ देखे गए थे।
बाघों की गणना के लिए वन अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। ये गणना चार चरणों में की जाएगी। इसके लिए खाका तैयार किया जा रहा है। सबसे पहले जंगल और आबादी क्षेत्रों में तालाब और चाल-खाल की गिनती की जाएगी। दूसरे चरण में जंगल में गोबर, पंजे के निशान, वन्य जीवों को मारने की प्रवृति से उस क्षेत्र में बाघ की मौजूदगी के साक्ष्य जुटाए जाएंगे।
तीसरे चरण में तालाब और चाल-खाल के इर्द-गिर्द कैमरे लगाए जाएंगे। चौथे चरण में कैमरों की जांच और चिह्नित वन क्षेत्र में बाघ विशेषज्ञों की ओर से सर्वे किया जाएगा। उन्होंने बताया कि बाघ करीब 500 हेक्टेयर वन क्षेत्र में ही विचरण करता है, लेकिन कभी-कभी शिकार के कारण वह अपना वास स्थल बदल देता है। वह ज्यादातर तालाब व चाल-खाल के आसपास अपना वास स्थल बना लेता है। लिहाजा इन जगहों पर खास नजर रखी जाएगी।