डेस्क। भारत के महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के खिलाफ पटियाला हाउस कोर्ट में सिविल सूट दाखिल हुआ है। सिविल सूट में महामहिम को नाम से प्रतिवादि बनाया गया है। प्रणव मुखर्जी की किताब में “टर्बुलेंट इयर्स” में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के संबंध में की गई टिप्पणियों पर दाखिल सूट में आपत्ति जताई गई है। याचियों ने मांग की है कि अदालत किताब के उपरोक्त अंशों को गलत और हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला घोषित करें और साथ ही प्रणब मुखर्जी को आदेश दिया जाए कि वे किताब के उन आपत्तिजनक अंशों को हटाएं तथा उस बारे में पब्लिक नोटिस जारी करें। यह सूट लखनऊ और फैजाबाद के रहने वाले चार लोगों की ओर से सोमवार को उनके वकील हरि शंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने दाखिल किया। वकील विष्णु ने बताया कि सोमवार को दोपहर बाद पटियाला हाउस अदालत में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के खिलाफ सिविल सूट दाखिल कर दिया गया और इस सूट पर मंगलवार को अदालत सुनवाई कर सकती है। सूट में कहा गया है कि प्रणब मुखर्जी की किताब की पृष्ठ संख्या 128-129 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के गलत फैसलों का जिक्र किया गया है जिसमें यह कहा गया है कि 1 फरवरी 1986 को राम जन्मभूमि मंदिर खुलवाना उनका गलत फैसला था। लोग महसूस करते हैं कि इस काम को टाला जा सकता था। याचियों का कहना है कि किताब में दिये गये ये अंश सही नहीं हैं क्योंकि राम जन्मभूमि का ताला जिला जज फैजाबाद के आदेश से खुला था। कहा गया है कि किताब के लेखक ने लोगों को ये बताने की कोशिश की है कि मंदिर का ताला खुलवाने का न्यायिक आदेश प्रधानमंत्री राजीव गांधी की फैसला लेने की चूक थी। किताब में यह बताने की कोशिश की गई है कि भारत में न्यायिक आदेश राजनैतिक और प्रशासनिक आकाओं के दबाव में होते हैं। इस टिप्पणी से आम जनता की निगाह में न्यायपालिका की छवि खराब होती है। यह एक तरह से न्यायालय की अवमानना है। इसी तरह किताब की पृष्ठ संख्या 151 से 155 में लेखक ने 6 दिसंबर 1992 की घटना का जिक्र करते हुए विवादित ढांचे को बाबरी मस्जिद कहा है। किताब में बीबीसी के रिर्पोटर मार्क टुली की 5 दिसंबर 2002 की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है। याचियों का कहना है कि लेखक का इस तरह हिन्दुओं के खिलाफ सीधी टिप्पणीं करना और खुले तौर पर बाबरी मस्जिद का पक्ष लेना यह दर्शाता है कि ढहाया गया ढांचा मस्जिद थी और बर्दाश्त न किये जाने वाले उस कार्य के लिए हिन्दू और हिन्दू संगठन जिम्मेदार थे। याचियों ने कहा है कि राजनैतिक सोच के चलते प्रणव मुखर्जी ने ऐतिहासिक तथ्यों और न्यायिक प्रक्रिया को देखे बगैर इस तरह की एक तरफा बात की है। हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने 30 सितंबर 2010 को बहुमत से दिये गये फैसले में कहा है कि ढांचा निर्माण से पहले उस जगह अयोध्या में हिन्दू मंदिर था।