देहरादून: जी हां ये कोई कहानी नहीं है, लकिन किसी कहानी से कम भी नहीं है। इस कहानी को हर किसी को अपने जीवन में उतारना चाहिए। क्योंकि से कहानी पर्यावरण से जुड़ी है। गंगा की निर्मलता से जुड़ी है। एक पिता की इच्छा थी कि उनके मरने के बाद उनकी राख को गंगा में ना डाला जाए। वो चाहते थे कि उनका पुनर्जन्म पेड़ के रूप में हो। उनके उस सपने को उनकी बेटियों ने साकार कर दिखाया।
पूर्व गृह सचिव और 1984 में दिल्ली के उप राज्यपाल रहे मदन मोहन किशन वली ने तय किया था कि उनके अंतिम संस्कार के बाद उनकी राख को गंगा में प्रवाहित नहीं किया जाए। वे पेड़ के रूप में पुनर्जन्म चाहते थे। पिता के इस संकल्प को बेटियों ने पूरा किया। उनकी बेटियों ने हेस्को ग्राम शुक्लापुर पहुंचकर पिता की राख और मिट्टी मिलाकर बेर और आड़ू के पौधे रोपे। अब तक इस तरह के 32 लोग हैस्को ग्राम में पौध रोपण कर चुके हैं। खुद पद्मश्री अनिल जोशी अपने भाई प्रसिद्ध छायाकार कमल जोशी जी स्मृति में पौध रोपण कर चुके हैं।
स्व. मदन मोहन किशन वली की बेटियों अर्चना कौल, रेणुका वली और डॉ. चारू वली खन्ना उनकी राख लेकर हैस्को ग्राम पहुंचे और बेर व आडू के पौधे रोपे। उनके पिता चाहते थे कि उन्होंने जितना हवा, पानी व जंगल के संसाधनों को भोगा और जो भी वृक्षों से लेकर फलों के रूप में सेवन किया, वह सब समाज हो वापस कर सकें। इसलिए तीनों ने तय किया कि वह अपने पिता को वृक्ष के रूप में देखें।