सूत्रों की मानें तो घोंच का कारोबार तेजाब फिल्म की तरह चलता है, जो लोठिया पठान की याद ताजा कर देता है। उस फिल्म में भी लोठिया पठान बस्तियों में कच्ची शराब का कारोबार करता था। बस्ती-बस्ती जाकर उसके लोग शराब पहुंचाते थे। लोठिया पठान खुद तो शराब नहीं पीता था, लेकिन लोगों को अपनी ही शराब पीने के लिए कर्ज देता था और हर शराब खरीदने वाले और पीने वाले की उधारी का हिसाब रखता था।
ठीक उसी तरह घोंचू का कारोबार भी चलता है। घोंचू भी लोगों को शराब उधारी में बेचने के लिए देता है। उसने शराब उधार लेने वाले का पूरा बही-खाता बनाया है। किस बस्ती में किस दिन, कितनी शराब की खपत होती है। उसकी पूरी डिटेल इन बही-खातों में रखी जाती है। बाकायदा 200 रुपये रोजाना की दिहाड़ी पर शराब सप्लाई के लिए लड़के रखे गए हैं। यही बस्ती-बस्ती जाकर तेजाब फिल्म के लोटिया पठान के गुर्गों की तरह शराब की सप्लाई करते हैं और लोगों से वसूली भी। हिसाब-किताब रखने के लिए मुनीम भी रखा गया है।