देहरादून: एपीडेमिक डिजीज एक्ट-1897। सालों पुराने इस एक्ट की जरूरत अब महसूस हुई है। इस एक्ट को लागू करने की सलाह पिछले दिनों केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने सभी राज्यों को दी थी। इस एक्ट की जरूरत क्यों पड़ी ? और उसमें ऐसा क्या खास है कि कोरोना वायरस को रोकने के लिए इसे लागू करने की स्थिति आई ? इस एक्ट में क्या प्रावधान हैं और इसके क्या लाभ हो सकते हैं। हम आपको बाताते हैं कि इस एक्ट को क्यों बनाया गया था और इसमें क्या कुछ खास प्रावधान हैं…।
एक्ट का सेक्शन-2 (ए)
एपीडेमिक डिजीज एक्ट-1897 में 4 सेक्शन हैं। माना गया है कि यह अपने आप में सबसे छोटा एक्ट है। इस एक्ट के सेक्शन 2 में इसे लागू करने के लिए कुछ शक्तियां राज्य और सेक्शन 2 (ए) की शक्तियां केंद्र सरकार को किसी महामारी को दूर करने या नियंत्रित करने के लिए दी गईं हैं। एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 की धारा-2 में लिखा है कि जब राज्य सरकार को किसी समय ऐसा लगे कि उस राज्य के किसी भाग में कोई खतरनाक महामारी फैल रही है या फैलने की आशंका है, तब राज्य सरकार इस प्रयोग कर सकती है।
एक्ट की धारा 2(बी)
एक्ट की धारा 2(बी) में राज्य सरकार को यह अधिकार होगा कि बाहर से आने वाली बसों, रेल या किसी दूसरे तरह के बाहन और यात्रा करने वाले लोगों को, जिनके बारे में यह शंका हो कि वो महामारी से ग्रस्त हैं या फिर उनसे महामारी फैल सकती है। सरकार के सभी जिलों के डीएम को यह अधिकारी दे सकती है कि वो किसी भी व्यक्ति, जिसको लेकर यह शंका हो कि उससे महामारी फैल सकती है। उसीके घर में बंद कर इलाज करवा सकते हैं। उन्हें किसी अस्पताल या अस्थायी आवास में रखने का अधिकार होगा।यदि कोई संदिग्ध संक्रमित व्यक्ति है तो उसकी जांच भी किसी निरीक्षण अधिकारी से करवा सकते हैं।
एक्ट की धारा-3
एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 की धारा-3 में एक सख्त प्रावधान भी है. अगर एपीडेमिक डिजीज एक्ट-1897 का सेक्शन-3 लागू हो गया, तो महामारी के संबंध में सरकारी आदेश न मानना अपराध होगा और इस अपराध के लिए आईपीसी की धारा-188 के तहत सजा मिल सकती है।