मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कॉमन कॉज मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2021 के फैसले के आदेश का उल्लंघन करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुख एसके मिश्रा के कार्यकाल को दिए गए विस्तार को अवैध ठहराया और कहा कि उन्हें और विस्तार नहीं दिया जाना चाहिए। हालांकि, न्यायालय ने अंतरराष्ट्रीय निकाय एफएटीएफ की समीक्षा और कामकाज के सुचारू हस्तांतरण के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें 31 जुलाई, 2023 तक अपने पद पर बने रहने की अनुमति दी। बता दें कि एसके मित्रा का कार्यकाल 18 नवंबर को खत्म होना था।
जानें क्या है पूरा मामला?
संजय मिश्रा को पहली बार नवंबर 2018 में दो साल के कार्यकाल के लिए ईडी निदेशक नियुक्त किया गया था। यह कार्यकाल नवंबर 2020 में समाप्त हो गया। मई 2020 में वे 60 वर्ष की सेवानिवृत्ति की आयु तक पहुंच गए। हालांकि, 13 नवंबर 2020 को केंद्र सरकार ने एक कार्यालय आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि राष्ट्रपति ने 2018 के आदेश को इस आशय से संशोधित किया था कि ‘दो साल’ की अवधि को ‘तीन साल’ की अवधि में बदल दिया गया था। इसे एनजीओ कॉमन कॉज ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2021 के फैसले में संशोधन को मंजूरी दे दी लेकिन मिश्रा को और विस्तार देने के खिलाफ फैसला सुनाया था।
इन संशोधनों को रखा बरकरार
वहीं आज न्यायालय ने केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम में किए गए संशोधनों को भी बरकरार रखा, जो केंद्र को ईडी और सीबीआई के प्रमुखों का कार्यकाल 5 साल तक बढ़ाने की अनुमति देता है। यह कहते हुए कि कानून पर न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है और इन अधिकारियों की नियुक्तियां एक उच्च-स्तरीय समिति द्वारा की जाती हैं, न्यायालय ने यह देखते हुए इन संशोधनों को बरकरार रखा कि पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं। कोर्ट ने कहा कि जनहित में और लिखित कारण के साथ उच्च स्तरीय अधिकारियों को विस्तार दिया जा सकता है।
तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने की सुनवाई
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने मिश्रा की नियुक्ति के साथ-साथ केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम में हालिया संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस नेता जया ठाकुर, रणदीप सिंह सुरजेवाला, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और पार्टी प्रवक्ता साकेत गोखले शामिल हैं। पीठ ने मई में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने मोटे तौर पर दो मुद्दों पर विचार किया – पहला, संशोधनों की वैधता के संबंध में, दूसरा मिश्रा के कार्यकाल के लिए दिए गए विस्तार की वैधता।