नैनीताल : कुछ दिनों पहले कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों को उत्तराखंड में शामिल किए जाने वाले पत्र को लेकर विवादों में घिर गये थे. जिसके बाद एक बार फिर से एक वायरल पत्र से वो चर्चाओं में आ गए हैं.
जी हां सोशल मीडिया में उनके नाम का साइन किया एक पत्र वायरल हो रहा है जो कि शासन को लिखा गया है. इस पत्र में नंबर 3 वाली लाइन चर्चा का विषय बनी हुई है.
आपको बता दें कि इस वायरल लेटर में लोक सभा, राज्य सभा, निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में कुमाऊं विश्वाविद्यालय के शिक्षकों और प्रोफेसरों को ड्यूटी से अवमुक्त करने की अपील गई है. इस लेटर के नंबर 3 में लिखा हुआ है कि कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर्स सम्मानित वर्ग के हैं उनकी गांव गली में ड्यूटी लगाना उनकी गरिमा के विरुद्ध है.
क्या गांव में जिन शिक्षकों की ड्यूटी लगती है उनकी इज्जत-गरिमा नहीं होती?
बड़ा सवाल ये है कि क्या ये लेटर खुद कुलपति ने जारी किया है(हम इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करते हैं) और अगर ये कुलपति द्वारा लिखा गया है तो क्या गांव में जिन शिक्षकों की ड्यूटी लगती है क्या उनकी इज्जत उनकी गरिमा नहीं होती. क्या गांव में ड्यूटी करने से, राज्य के प्रति जिम्मेदारी निभाने से गरिमा कम या वो काम गरिमा के विरुद्ध हो जाता है? सवाल ये भी है कि क्या गांव में रहना और वहां इलेक्शन ड्यूटी लगाने से इज्जत कम हो जाती है या क्या इससे उनकी गरिमा पर बन आती है?
पहले भी हुआ था लेटर वायरल
आपको बता दें कि इससे पहले भी कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर केएस राणा का एक पत्र वायरल हुआ था. जिसमे उत्तराखंड में उत्तरप्रदेश के कुछ जिलों को शामिल करने की बात कही गई थी. इस वायरल लेटर पर कुलपति का कहना था कि उनके नाम से वायरल किया गया पत्र 3 साल पुराना है. कुलपति प्रोफेसर केएस राणा ने कहा था कि वह कभी भी उत्तराखंड में यूपी के जिलों को शामिल किए जाने के पक्ष में नहीं रहे. उनका कहना था कि वह कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं हैं, जो इस तरह की सिफारिशी पत्र के माध्यम से भेजेंगे.
नोट : हम इस पत्र की सत्यता की पुष्टि नहीं करते हैं