देहरादून- एक औऱ जहां कई मंत्री-विधायक और आईएएस अफसर अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा देने से परहेज कर रहे थे अब उसी राह पर पुलिस मुख्यालय भी शायद चल पड़ा है. तभी तो पुलिस मुख्यालय आईपीएस अफसरों की सम्पत्ति का ब्यौरा देने से दूरी बना रहा है.
ऐसा मिला जवाब कि जो गले से ना उतरा
जिस तरह का जवाब पुलिस मुख्यालय से मिला उससे साफ है कि पीएचक्यू अपने आईपीएस अफसरों की सम्पत्ति का ब्यौरा देने ने एक तरह से मना ही किया क्योंकि उन्होंने सम्पत्ति का ब्यौरा मांगें जाने पर अटपटा सा जवाब दिया जो की किसी के गले से नहीं उतर रहा.
5 मई को दाखिल की थी आरटीआई, आईपीएस की संख्या कितनी है ये जवाब मिला लेकिन
मीडिया रिपोर्ट की माने तो दरअसल आरटीआई एक्टिविस्ट हेमंत गोनिया ने 5 मई 2018 को आरटीआई दाखिल की थी जिसमें उन्होंने उत्तराखंड पुलिस महानिदेशालय से आईपीएस अफसरों की संख्या और उनके संपत्ति का ब्यौरा मांगा था। लेकिन एक महीने तक कोई जवाब नहीं मिला औऱ मिला भी तो उससे संतुष्टि नहीं हुई. हां आईपीएस कितने हैं इसका जवाब जरुर मिला लेकिन सम्पत्ति का नहीं.
13 जून को मिला जवाब वो भी असंतुष्ट
दरअसल 13 जून को पुलिस महानिदेशालय के लोक सूचना अधिकारी दलीप सिंह कुंवर ने दो लाइन के जवाब में कहा कि उत्तराखंड में वर्तमान में 53 आईपीएस अधिकारी नियुक्त हैं और वर्ष 2016-17 का संपत्ति विवरण ऑनलाइन भरे जाने के कारण मुख्यालय में उपलब्ध नहीं है.
एक लाइन के जवाब के लिए एक महीने का समय
सबसे पहले सोचने वाली बात तो ये है कि आरटीआई दाखिल करने के 1 महीने का इंतजार करवाया गया वो भी सिर्फ इस जवाब के लिए कि ऑनलाइन भरे जाने के कारण मुख्यालय में ब्यौरा उपलब्ध नहीं है. अगर एक लाइन का जवाब ही देना था तो उसके लिए एक महीने का समय क्यों लगा. क्या पुलिस मुख्यालय इंतजार कर रहा था कि इसका क्या जवाब दिया जाए औऱ जब कोई बहाना नहीं मिला तो यही जवाब सही.
क्यों नहीं बताया गया उस वेबसाइट का नाम
इससे तो साफ होता है कि कुछ तो झोल है वरना इतने से जवाब के लिए एक महीने का समय औऱ जवाब भी ऐसा की किसी के गले से न उतरे.
चलो माना की आईपीएस की सम्पत्ति का ब्यौरा ऑनलाइन भरा गया लेकिन सोचने वाली बात ये थी कि उस ऑनलाइन साइट का नाम क्यों नहीं बताया गया जहां सारी जानकारी उपलब्ध है.
याचिकाकर्ता का कहना ये सूचना अधिकार अधिनियम का उल्लंघन
वहीं इस पूरे मामले पर याचिकाकर्ता हेमंत गोनिया का कहना है कि यह सूचना अधिकार अधिनियम का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि जब मैंने मुख्यमंत्री कॉलेज से IPS की संपत्ति का ब्यौरा मांगा तो पुलिस मुख्यालय ने जवाब में कहा कि ब्यौरा वेबसाइट पर उपलब्ध है वहां देखे लेकिन ये नहीं बताया कि किस वेबसाइट पर जाकर। जब 10 रुपये का पोस्टल आर्डर लगाया है तो हमें पूरी सूचना प्रदान करनी चाहिए। पुलिस मुख्यालय के पास IPS की संपत्ति का ब्यौरा ही नहीं है। क्या मुख्यालय में IPS का ब्यौरा होना चाहिए या नहीं!