देहरादून : हर माता-पिता अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ाने चाहते हैं और अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं ताकि अच्छे ज्ञान को पाकर उनका बच्चा भविष्य में कामयाब हो. राज्य की त्रिवेंद्र सरकार और केंद्र की मोदी सरकार सब पढ़ें सब बढ़ें का नारा देती आ रही है और पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया का नारा देकर हर बच्चे को अच्छी शिक्षा देने की बात करती है लेकिन ये दावे मात्र मंत्र पर भाषण तक ही सीमित हैं क्योंकि बच्चों को किताबें तो छोड़िए ग्रामीण इलाकों में स्थित स्कूलों में बैठने के लिए क्लास रुम और भवन तक नहीं है.
देहरादून में निजी स्कूल में लूट का कारोबार,
वहीं बात करें निजी स्कूलों की तो निजी स्कूलों के रेट इतने हाई हो रखें हैं की कोई गरीब या मीडिल क्लास का आदमी अपने बच्चों को वहां नहीं पढ़ा सकता. जी हां आज हम बात करेंगे देहरादून के उन स्कूलों के बारे में जो अभिभावकों की जेब में खूब डाका डाल रहे हैं और अभिभावक मजबूर है बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने को क्योंकि अगर सरकारी स्कूलों की दशा अच्छी होती और अच्छी शिक्षा उपलब्ध होती तो शायद बच्चे वहां पढ़ते औऱ उन स्कूलों को आबाद करते.
स्कूलों की पुस्तक विक्रेताओं से पहले से साठगांठ है
देहरादून के कारगी चौक, शिवालिक एन्क्लेव स्थित सैण्डलवूड स्कूल में(ICSE बोर्ड) अभिभावकों को किताबों के नाम पर खूब लूटा जा रहा है. अभिभावकों का कहना है कि स्कूल नई कक्षाओं की किताबों को अपने बंधित पुस्तक विक्रेताओ से खरीदने को मजबूर करता है. कक्षा 1 से लेकर 9 तक की किताबें 4000 से लेकर 7000 रुपये तक की रेट पर मिल रही है…जिससे साफ है की स्कूलों की पुस्तक विक्रेताओं से पहले से साठगांठ है. और तो और पुस्तकों के नाम तक स्लिप में लिखकर नहीं दिए जाते हैं और ये भी पता नहीं चलता की कितनी किताबें खरीदी गई है.
कक्षा 2 की अंग्रेजी की किताब 429 रुपये की
किताबें कहां से लेनी है इसके लिए अभिभावकों को पहले से ही पुस्तक विक्रेता का पता दे दिया जाता है औऱ किताबों के रेट इतने हाई है कि इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कक्षा 2 की अंग्रेजी की किताब 429 रुपये की सुलेख रचना की किताब 150 रुपये में बेची जा रही है. इससे भी हैरानी वाली बात ये है कि अभिभावकों को बेवकूफ और असहाया समझा जा रहा है…
शिकायत करने पर दी जाती है अभिभावकों को धमकी
वहीं स्कूल प्रशासन से शिकायत करने पर कुछ अभिभावकों को उनके बच्चों को स्कूल से निकालने की चेतावनी दी जा रही है. जिसके बाद अभिभावक बच्चों को उसी स्कूल में पढ़ाने को मजबूर हैं क्योंकि ऐसे में बच्चों की पढ़ाई खराब होती है. अभिभावकों का कहना है कि 0 प्रतिशत करप्शन औऱ 100 सुशासन की बात देश में होती है तो शिक्षा के सशक्तिकरण की बात हो रही है तो वहां इस प्रकार का विषय निंदनीय है.
अभिभावक जेब पर पड़ रहे बोझ और इस भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोले
वहीं बता दें इसके लिए अभिभावकों द्वारा धरना भी स्कूल के बाहर दिया जा रहा है. अभिभावक जेब पर पड़ रहे बोझ और इस भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोले हैं साथ ही राज्यपाल, पीएमओ, शिक्षा सचिव, शिक्षा मंत्री को प्रार्थना पत्र लिखा गया है और इस किताबों के बोझ को कम करने की मांग की गई है.
बड़ा सवाल
बड़ा सवाल ये भी उठ रहा है कि अगर राज्य में देश में सरकारी स्कूलों की हालत ठीक होती तो शायद अभिभावक अपने बच्चो को ऐसे लुटेरे प्राइवेट स्कूलों में न भेजकर सरकारी स्कूलों में भेजते.