देहरादून : फुलफुलमाई, घोघा या फूलदेई के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड ही नहीं पूरे देश का यह पहला बाल पर्व व संसार का एकमात्र ऐसा उत्सव है जिसकी शुरुआत तो नौनिहाल करते हैं लेकिन समापन बड़े बुजुर्ग के हाथों से होता है।
वहीं पिछले साल की तरह इस बार भी बाल पर्व पर छोटी-छोटी बच्चियां फुलदेई का त्यौहार मनाने के लिए राजभवन के साथ-साथ मुख्यमंत्री आवास पहुंची जहां मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बच्चियों की टोकरी में गेहूं और चावल रख कर भेंट किया.
चैत्र मास के आगमन का स्वागत करने के लिए पहाड़ों में नौनिहाल चैत्र संक्राति के दिन रिंगाल, व नळओ (गेंहूँ के सूखे डंठल) की छोटी छोटी टोकरियाँ लेकर खेतों की मुंडेरों पर खिले बासंती फूलों जैसे फ्योंली, लाई, कुंज, पद्म, सुतराज, बनसका, बुरांस, आडू, खुमानी, बसिंग, दूब, मेलु, घिन्घोरा, कविलास, ग्वीराल, सेब, सकिनी, धौला, मालू, चुपल्या, घट, भेकल,किलमोडी,कंवल, जयाणी सहित सैकड़ों प्रजाति के पुष्प इस चैत्र मास खिलते हैं उन्हें सुबह सबेरे टोकरियों में भरकर लाते हैं और सर्वप्रथम गॉव के मंदिर में चढाने के बाद फुलदेई की प्रार्थना करते हुए कहते हैं फूल देई फूल देई संगरांद, सुफल करो नयो साल तुमकु श्रीभगवान.
ये बाल-ग्वाल पूरे एक माह तक हर दिन हर देहरी में फूल डालते हैं और ठीक एक माह के बाद बैशाखी के दिन यह बाल-पर्व त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। गांव के बड़े बुजुर्ग गुड चावल पकोड़ी, भेंट इत्यादि इन बच्चों को विदा करते हैं