काशीपुर( सोनू जैन) : दीपों के पर्व दीपावली का त्यौहार में चंद दिन ही शेष रह गए हैं और ऐसे में मिट्टी के कार्य कर संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण बाजार में बिजली की झालरों के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक चीजों का आना है। अगर मिट्टी के कारीगरों की बात की जाए तो यह लोग भी अन्य लोगों की तरह दीपावली के त्यौहार से काफी उम्मीद रखते हैं। ऐसे में दियो की बिक्री कम होने से इन गरीब कुम्हारों के परिवारों पर रोजी रोटी का संकट गहरा गय.\
चाइनीज झालरों ने किया कुम्हारों की चाक की रफ्तार को धीमा
काशीपुर में आबादी से 2 किलोमीटर दूर स्थित स्टेडियम के पास दक्ष प्रजापति चौक पर स्थित यह है गरीब मिट्टी के कारीगरों के आशियाने। जहां इन मिट्टी के कारीगरों की जी-तोड़ मेहनत के दम पर तैयार होते हैं मिट्टी के दिए करवे और दीपावली के अवसर पर तैयार मिट्टी के अन्य सामान जिनसे रोशन होते हैं लोगों के घर। लेकिन बीते पिछले कई सालों से दीपावली के अवसर पर बाजार में बिजली की झालरों, बिजली के दियों तथा चाइनीज झालरों ने इन कुम्हारों की चाक की रफ्तार को धीमा कर दिया है। साल में एक बार ही दीपावली का त्यौहार आता है और इस त्यौहार के समय ही मिट्टी के दिए-पुरुए, हठली, करवे आदि की बिक्री से ही इन गरीब मिट्टी के कारीगरों एक परिवार को आस बंधी रहती है।
दीपावली जदिया मिट्टी के सामान बनाने की तैयारी 3 महीने पहले शुरू करते हैं-कारीगर
मिट्टी के कारीगर अर्जुन सिंह के मुताबिक दीपावली जदिया मिट्टी के सामान बनाने की तैयारी 3 महीने पहले शुरू करते हैं उनके मुताबिक दीपावली के अवसर पर छोटे चिराग, बड़े चिराग, हठली, दीए पुरवे आदि तैयार करते हैं।
पटवारी उनके खेतों में आते हैं और चाय नाश्ता करके चले जाते हैं-कारीगर
अर्जुन सिंह ने सरकार की तरफ से किसी भी तरह की सुविधा नही मिलने का आरोप लगाया। उनके मुताबिक कुम्हारों की मिट्टी को आसपास के किसानों ने अपने खेतों में मिला लिया है. जिस कारण मिट्टी के कारीगरों को अपने कारोबार के लिए उचित मिट्टी मिल ही नहीं पाती है। जब इसकी शिकायत तहसील में की जाती है तो पटवारी उनके खेतों में आते हैं और चाय नाश्ता करके चले जाते हैं।
यूपी सरकार की जैसी व्यवस्था उत्तराखंड सरकार ने अभी तक नहीं दी-कुम्हार
मिट्टी के कारीगर आदेश प्रजापति के मुताबिक इसके लिए पूरे दिन मेहनत की जाती है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से उत्तर प्रदेश सरकार ने कुम्हारों के लिए इलेक्ट्रॉनिक चाकों और मिट्टी की व्यवस्था की है ऐसी व्यवस्था उत्तराखंड सरकार ने अभी तक नहीं की है। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों इलेक्ट्रॉनिक चौक की एक खेप आई थी, लेकिन चुनाव के समय सक्रिय लोगों ने अपने परिचितों को ही वह चाहे उपलब्ध करा दी।
अपनी 3 महीने की मेहनत और दिन रात के परिश्रम के बाद जब यह मिट्टी के कारीगर बाजार में अपने हाथ से बनाए उत्पाद लेकर जाते हैं और बाजार में आने वाले ग्राहक इनकी मेहनत को नजरअंदाज करते हुए चाइनीज झालर, इलेक्ट्रॉनिक दियों की तरफ अपना रुख करते हैं तो बाजार में मिट्टी के बने उत्पाद बेचते इन कारीगरों के दिल से यही विनती निकलती है।
बना कर दिए मिट्टी के जरा सी आस पाली है।
मेरी मेहनत खरीदो लोगों मेरे घर भी दिवाली है ।