चमोली : खबर ग्राऊंड जीरो से है।गड़कोट और अंगोठ गांवों के नीचे भूस्खलन से बनी झील से ग्रामीणों में दहशत है। लोगों के खेत खलिहान भी भारी भूस्खलन की जद में हैं। भूस्खलन से कई गांवों को खतरा बना हुआ है। झील को तत्काल प्रभाव से खोलने की जरूरत है। लोगों ने मीडिया के माध्यम से प्रशासन को इसकी सूचना दी। चमोली जिले के पिण्डरघाटी का नारायणबगड़ प्रखंड में गड्डीगाड़ क्षेत्र के गडकोट और अंगोठ गांवों के नीचे वर्षों पुराना भूस्खलन क्षेत्र अब ग्रामीणों के लिए भारी मुश्किलों का सबब बनने वाला है। यहां पर बन रही झील को तत्काल प्रभाव से खोलने की जरूरत है।
दरअसल गडकोट और अंगोठ गांवों के मध्य यहां का एक बड़ा सा गधेरा बहकर नीचे पिण्डर नदी में आकर मिलता है।और लगातार हो रही बारिश इन दिनों इस भूस्खलन भाग को गधेरे का जल स्तर बढ़ने से काटने लगा है।जो ऊपर बसे गडकोट और अंगोठ गांवों की जमीन को लगातार नीचे गधेरे में धंसाने में सहायक बन रहा है। जिससे गड़कोट के नीचे दोनों इलाकों को जोड़ने वाला पुराना पुल के पास दोनों ओर से भारी मलवा-पत्थर गिरने से घाटी में गधेरे का मुंहाना बंद हो जाने से वहां पर झील बनती जा रही है।जो मानसून सत्र में तेज बारिश के होने पर निचले हिस्सों में कहर बरपा सकता है।
गड़कोट के लोगों में दहशत
लगातार झील का जल स्तर बढ़ने से ग्रामीणों की जमीनों पर हो रहे भूस्खलन से गड़कोट के लोगों में दहशत बनी हुई है। यहां गांव के नीचे वर्षों से भूस्खलन हो रहा है। जिसके उपचार के लिए यहां के लोगों ने शासन प्रशासन से गुहार तो बहुत बार लगाई लेकिट लोगों का कहना है कि हर बार उनकी अनसुनी कर दी गई। इस बार समस्या भयंकर रूप ले सकती है।झील बनने से न सिर्फ गड़कोट और अंगोठ की जमीनों और गांव को खतरा होगा बल्कि नीचे घटगाड़ गांव और मींगगधेरा बाजार को भी बाढ़ जैसे हालात से गुजरना पड़ सकता है।
ग्रामीणोॆ को याद आई 1992 को आई आपदा की याद
बताते चलें कि गड्डीगाड़ क्षेत्र का यह छोटा सा गधेरा अपने विकराल रूप के लिए भी जाना जाता है। यहां के ग्रामीण सन् 1992 की वह भयंकर बाढ़ को याद करते हुए बताते हैं कि तब इसी गधेरे ने गढीनी का भरा-पूरा बाजार रातों रात उजाड़ दिया था और 14 लोग अकाल मौत के गाल में समा गए थे।हर बरसात में यह गधेरा अपने बिकराल रूप में होता है।
वर्तमान में गांव के नीचे बनती जा रही झील को समय रहते हुए खोलने की तत्परता से जरूरत है। ताकि किसी अप्रिय स्थिति से किसी को दो चार न होना पड़े।