निकाय चुनावों के परिणाम आने के बाद कांग्रेस में तल्ख बयानों का दौर जारी है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कहा है कि चुनावों के बाद निकला ‘जहर’ वो पी लेंगे। प्रीतम ने ‘अमृत’ पार्टी के अन्य नेताओं के लिए छोड़ दिया है। हालांकि प्रीतम के तेवरों के साफ है कि वो इस बार बहुत कुछ ढंक कर और छुपा कर नहीं रखना चाहते। प्रीतम इस बार पार्टी के भीतर चल रही गुटबाजी को लेकर खरी खरी करने के मूड में हैं। यही वजह है कि वो मीडिया में ‘बात दूर तलक जाएगी’ जैसे बयान देने से भी गुरेज नहीं कर रहें हैं। प्रीतम सिंह के इन तेवरों से साफ है कि पार्टी में बड़े पैमाने पर असंतोष है। बड़े नेताओं के आपसी समन्वय की कमी भी दिखती है। खास तौर पर हरीश रावत और इंदिरा हृद्येश जैसे नेताओं का भी पार्टी अध्यक्ष के साथ आपसी तालमेल नहीं दिखता।
हरदा ने खुद को रखा दूर
कांग्रेस के पास निकाय चुनावों में दुखी होने से अधिक खुश होने के बहाने भी थे। भले ही कांग्रेस ने बीजेपी के जैसा प्रदर्शन नहीं किया लेकिन इस बात में दो राय नहीं कि बीजेपी के विजय रथ के पहियों को हिला तो दिया ही है। राज्य में मेयर की सात सीटों में से दो सीटें कांग्रेस ने अपने खाते में रख लीं। कांग्रेस कहां तक को इस कामयाबी पर खुश होती वो उल्टा गुटबाजी में ही उलझी। इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि कांग्रेस में हालात अच्छे नहीं हैं। हरीश रावत ने जिस तरह से अपने को निकाय चुनावों के प्रचार में बेहद सीमित रखा उससे साफ है कि वो फिलहाल राज्य में पार्टी की कमान संभाल रहे नेतृत्व के साथ तालमेल नहीं बैठा पाए हैं। हरीश रावत ने ज्यादातर पर्वतीय इलाकों में चुनाव प्रचार किया और कांग्रेस ने वहां अच्छा प्रदर्शन भी किया। हरीश रावत ने हल्दवानी और देहरादून सीटों पर प्रचार से खुद को दूर ही रखा और नतीजा सबके सामने है। कांग्रेस ने यहां मेयर पद की सीटें गंवा दीं।
2019 की राह होगी मुश्किल
जाहिर है कि इस बात की चर्चा पार्टी फोरम पर हुई होगी और कांग्रेस में मचे घमासान की यही अहम वजह मानी जा रही है। हरीश रावत ने अपने मन मुताबिक प्रचार किया और पार्टी के बनाए कार्यक्रम को फॉलो नहीं किया। प्रीतम सिंह तो यहां तक कह गए कि हरीश रावत ने प्रचार के लिए अपना वक्त ही नहीं दिया। कांग्रेस की इन्ही गुटबाजियों के बाद अब आशंका जताई जा रही है कि प्रीतम सिंह पार्टी आलाकमान से हरीश रावत की शिकायत का मन बना चुके हैं। ऐसे में 2019 से पहले कांग्रेस संगठन की ऐसी गांठें चुनावों में उसकी चुनौती को कमजोर कर सकते हैं।