प्रिय एवं आदरणीय भ्राता व मित्र त्रिवेंद्र,
विगत 18 माह से जबसे आप मुख्यमंत्री बने हैं मेरी आपकी मुलाकात एक ही बार हुई है , मगर दूर से जो दिख रहा है महसूस हो रहा है वो आज आपके सम्मुख शब्दशः बयान कर रहा हूँ।
आप शुरू से कर्मठ एवं ईमानदार जुझारू रहे हैं , मृदुभाषी रहे हैं , मैंने देखा है कि किसी की भी पीड़ा में आप स्वयं आगे बढ़कर उसके साथ कंधे से कन्धा मिला कर खड़े हो जाते है , फिर आज अचानक ऐसा क्यों हो गया है कि आपकी मृदु वाणी बेचैन होकर असयंमित हो जाती है , माना कि आप दिल के साफ़ हैं और अपनी साफगोई की वजह से कभी ऐसा भी बोल देते हैं जो सत्य होता है परन्तु कटु लगता है , भात्रवर अब आप पहले से भी बड़ी जिम्मेदारी के पद पर हैं और राजनीति का केंद्र बिंदु बन चुके हैं तो आपको भी समझना होगा कि कभी कभी सत्य को भी राजनीति की चाशनी के मुलम्मे में लपेट कर पेश करना पड़ता है। परन्तु शायद आपके साथ कोई राजनीतिक सलाहकार या तो है नहीं या तो आपको साफगोई से कहा नहीं गया , अगर इतनी सी बात आपके किसी राजनीतिक सलाहकार ने आपको बताई होती तो मित्रवर ये उत्तरा प्रकरण में जो छीछालेदर हुई है वो न हुई होती , मुझे पता है कि आपकी न ही मंशा गलत थी न ही इरादे मगर उच्च राजनीतिक पद पर विराजमान होकर जो राजनीतिक शब्दावली आपने नहीं इस्तेमाल की वहीँ आप मात खा गए।
वो दिन भी याद है
भ्राताश्री। मुझे आज भी वो दिन याद है जब आप हाथ पकड़ कर साथ में डाइनिंग टेबल पर बैठा लिया करते थे और भाभी जी के हाथ की एक रोटी और पेट भर जाने के बावजूद भी खाने की जिद्द करके खिला ही दिया करते थे , मुझे अभी भी याद है की मीडिया को आप में एक अभिन्न मित्र दिखता था और आपको मीडिया अपना अभिन्न हिस्सा नजर आता था परन्तु अचानक ये क्या हो गया आपको मुख्यमंत्री बनते ही बड़े भाई कि आपके कंधे से कन्धा मिलाकर चलने वाले मीडिया के दोस्तों की भी आपको याद नहीं आती यहां तक कि कभी कभी मांगने पर भी आपसे मिलने का टाइम नहीं मिलता , तो हमने भी यहीं सोंच लिया कि भाई कैरियर की बुलंदी पर है तो डिस्टर्ब न ही किया जाए , इसका ये कतई मतलब नहीं था कि आपसे प्यार या लगाव ज़रा भी कम हुआ हो , मगर हाँ ये सोंच कर मन अक्सर व्याकुल हो जाता है कि कृष्णा सुदामा की भांति ही सही आपसे संवाद हो पाता परन्तु फिर शासन और राजसत्ता की आपकी व्यस्तताएं जानकर मन को हमेशा समझा देता हूँ।
मिलकर भी अब मुलाकात नहीं होती
मित्रवर। मुझे याद है कि आप किसी भी मीडिया कर्मी के आने पर सारा काम छोड़ कर पहले उसको टाइम दिया करते थे मगर आज ये अचानक आपका टाइम टेबल सेट करने वाले लोगों को क्या हो गया की सप्ताह की बात छोड़ो माह में भी एक दिन आपके और मीडिया के बीच संवाद के लिए नहीं रखा और आपमें मीडिया के साथ एक संवादहीनता की स्थिति कायम कर दी , जिसकी वजह से आपके खिलाफ कोई बात होने पर भी न ही आपको खबर लगती है न ही आपका स्वयं का विचार मीडिया को पता होता है ,उत्तरा प्रकरण जैसा छोटा सा विषय जिसमे उत्तरा पंत ने भी सभ्य भाषा की सीमा का उल्लंघन किया , उसका भी मीडिया में इतना तूल पकड़ना महज आपके और मीडिया के बीच उपजी संवादहीनता का नतीजा था , ऐसा मेरा व्यक्तिगत विचार है। उम्मीद है कि आपको सप्ताह में एक दिन कम से कम अपने मीडिया के मित्रों के संवाद करना ही चाहिए ताकि हम आपकी मनःस्थिति के साथ ही आपके विकास के विचारों की निरंतरता के साथ स्वयं को भी स्थापित कर सकें।
भ्राताश्री। आप हमेशा से पार्टी व् संघ के प्रति आस्थवान रहे और समर्पित रहे , मगर अब जब संघ परिवार और आपकी पार्टी के पदाधिकारियों के मुंह से सुनता हूँ कि आप अभिमानी हो गए हैं और कुछ लोगों की बातों के सिवा आपको कुछ नहीं दिखता , तो सुन कर दुःख होता है क्यूंकि मुझे अच्छी तरह से पता है की जिस त्रिवेंद्र सिंह रावत को मैं जानता हूँ वो जमीन पर पॉंव रखने वाला ,जमीन से जुड़ा व्यक्ति है , मगर कुछ ख़ास लोग आपकी परिक्रमा करके जब पार्टी और संगठन के लोगों को भी ये एहसास कराने से न चूकते हों की अब वो ही आपके नाक कान दिमाग हैं तो जाहिर है की जो पार्टी कार्यकर्त्ता और संघ के लोग आपको अपना समझकर आज तक आपके लिए धूप छांव हर जगह खड़े हों, उनकी भावनाएं तो आहत होंगी ही , अतः उन सबकी भावनाओं का ख़याल भी आपको ही रखना है मित्रवर।
वो कमरा नंबर 3 और 4
बड़े भ्राताश्री। मुझे आज भी याद है पुराने उत्तराखंड निवास का मंत्री रूम नंबर ३ और ४ जहाँ अक्सर कुछ मंत्री जिनमे से कई अभी भी आपके मंत्रिमंडल में हैं , किस तरह प्रेम से सुबह का सब्जी रोटी का नाश्ता और राजनीतिक तथा पारिवारिक और समसामयिक विषयों पर चर्चा होती थी , सुना है उन मित्र मंत्रियों को भी अब आपका स्नेह पूर्ववत नहीं मिल पा रहा है , बंधुवर आपकी राजनीतिक और प्रदेश सँभालने की जिम्मेदारियों को मैं समझ सकता हूँ , मगर राजनीति में एक मित्रों का जो समूह होता है उसका शायद अब नितांत अभाव है या हो सकता है मेरी आँखे मुझे दिग्भ्रमित कर रही हों , परन्तु राजनीति और व्यक्तिगत जीवन में भी मित्रों का एक समूह बहुत आवश्यक होता है जो हर दुःख सुख में आपके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर खड़ा होता है , सत्ता के इस शीर्ष शिखर पर आकर एक राजनीतिक समूह की नितांत आवश्यकता होती है जिसकी आपको इस समय जरूरत है ऐसा मुझे लग रहा है , उस से आपके राजनीतिक निर्णय के साथ एकाकी निर्णय का बोझ आपके ऊपर से हटेगा तो आपकी चित्त की नैसर्गिक प्रसन्नता पुनः वापस आएगी जो हम सभी आपमें देखना चाहते हैं।
मुझे लगता है कि अब अपनी वाणी को विराम देना चाहिए , छोटा भाई होकर जो मुझे दिख रहा है और जो मेरी अंतरात्मा ने कहा वो विचार मैंने आपको प्रेषित किये हैं , बाकी अगर मिलने का अवसर मिला तो चर्चा होगी , बस मेरी प्रबल इच्छा उसी पुराने त्रिवेंद्र सिंह रावत रुपी अपने बड़े भ्राता और मित्र को देखने की है जो निष्कलंक है, जो ईमानदार है , जो प्रसन्नचित्त है , जो कोमल हृदय का स्वामी है , जो दोस्तों का दोस्त है और दुश्मनो को नजरअंदाज करता है , जो भाई हमेशा सबके सुख दुःख में सम्मिलित है , और इसी उम्मीद के साथ आपसे पुनः गुजारिश है भ्राता त्रिवेंद्र कि हे भ्राता अपनी दुनिया में वापस आ जाओ।