न 56 घोटालों का पता चला न 113 घोटालों का
ब्यूरो-16 साल के उत्तराखंड राज्य की ये बिडंबना ही तो है कि, सियासत का विद्रूप चेहरा जनमुद्दों के नाम पर नेतृत्व की गुहार नहीं करता। 2002 में पहली निर्वाचित सरकार उत्तराखंड में बनी लेकिन चुनावी साल 2007 तक आते-आते तिवारी सरकार के दामन पर इतनी तोहमतें लग गई कि भाजपा ने इन्हें मुद्दा ही बना लिया।
भाजपा ने उस चुनाव में जनता से पानी-बिजली,सेहत, और शिक्षा जैसे बुनियादी सवालों पर नेतृत्व नहीं मांगा बल्कि तिवारी सरकार पर लगाए 56 घोटालों के आरोपों की जांच के नाम पर सत्ता की गुहार लगाई। 2007 में भाजपा ने इन घोटालों की जांच पर सूबे की सत्ता तो हथिया ली लेकिन अपने पांच साल के कार्यकाल में 56 घोटालों की जांच के लिए बने आयोग की रिपोर्ट ने क्या सिफारिश की इसका पता सूबे की जनता को 2012 के चुनाव तक तो क्या आज तक नहीं चल पाया। आलम ये है कि जनता तिवारी सरकार में हुए घोटालों को बिसर भी चुकी है।
2012 का चुनाव आया तो कांग्रेस ने 2007 की भाजपा सरकार के दामन पर 2012 के चुनावों में घोटालों के 113 दाग जनता को दिखाए और दोषियों को बेनकाब करने के लिए मासूम जनता से सत्ता की अपील की। सबे की भोली-भाली जनता ने कांग्रेस को सत्ता सौंप दी। नई सरकार ने भाजपा सरकार के घोटालों की पोल खोलने के लिए फिर से एक आयोग बनाया लेकिन उस आयोग ने अपनी सिफारिश में क्या एक्शन लेने के सुझाव सरकार को दिए और किस भाजपा नेता या उस दौर के अधिकारी के खिलाफ लेने को कहा इस चुनावी घड़ी मे भी जनता को नहीं लग पाया।
अब एक बार फिर से भाजपा ने घोटालों के खिलाफ अगड़ाई ली है और विजय बहुगुणा का कहना है कि भाजपा के सत्ता में आते ही हरीश रावत सरकार में हुए घोटालों की जांच होगी। मगर बहुगुणा जी ने अपने कार्यकाल मे गठित उस आयोग की सिफारिश के राज खोलना मुनासिब नहीं समझा जो उन्होंने भाजपा राज के पर्दाफाश के लिए बनाया था। बहरहाल एक बार फिर से भाजपा ने कांग्रेस राज में हुए घोटालों के खिलाफ जांच का शिगूफा छेड़ दिया है।