चुनावी मौसम में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और बड़े कांग्रेसी नेता हरीश रावत की प्रदेश से दूरी को लेकर अब चर्चाओं का बाजार गर्म है। चाक चौराहों पर सियासी बतकही के दौरान हरीश रावत का पूरे सीन से गायब होना लोगों के लिए कौतूहल का विषय बन चुका है। फिर हरीश रावत और इंदिरा हृद्येश के बीच शीत युद्ध के कयास भी चाय की चुस्कियों के बीच ही लगा लिए जा रहें हैं।
इंदिरा हृद्येश इस बार अपने बेटे को राजनीति में लाने में कामयाब रहीं हैं। सुमित हृदयेश इस बार हल्दवानी से कांग्रेस के टिकट पर मेयर का चुनाव लड़ रहें हैं। जाहिर है कि इंदिरा अपने बेटे के लिए हर सियासी दांव लगा रहीं हैं। अपनी सियासी विरासत को वो सम्मानजनक तरीके से अपने बेटे के सिर रख वॉलिंटयरी रिटायरमेंट लेना चाहेंगी। दिलचस्प ये है कि इंदिरा सुमित को सहयोग तो करना चाहती हैं लेकिन हरीश रावत का सहयोग लेने की उनकी कोई मंशा नहीं दिखती।
फिर ये कहना भी मुश्किल है कि हरीश रावत, इंदिरा हृद्येश का सहयोग करेंगे। हरीश रावत अपनी बेटी अनुपमा को राजनीतिक रूप से फिलहाल स्थापित नहीं कर पाए हैं। फिर वो इंदिरा हृदयेश के बेटे के लिए अपने सियासी चातुर्य का प्रयोग क्यों कर करने लगे।
हरीश रावत कांग्रेस के लिए पूरे उत्तराखंड के सर्वमान्य और भीड़ जुटाउ नेता के तौर पर हैं लेकिन हैरतअंगेज तरीके के कांग्रेस ने उन्हें अभी दूर ही रखा है। कांग्रेस भवन की दीवारों में बनी दरारों से आती खबरें बताती हैं इंदिरा हृदयेश और प्रीतम सिंह की जुगलबंदी आजकल ठीकठाक चल रही है। इस जुगलबंदी से हरीश रावत को दूर रखने का इरादा भी फिलहाल इंदिरा हृदयेश का है। इंदिरा हृदयेश नहीं चाहती कि हल्दवानी में सुमित से हटकर सभी का ध्यान हरीश रावत पर जाए। ऐसे में हरीश रावत को दूर ही रखा जा रहा है। खबरें हैं कि हरीश रावत चुनाव प्रचार के लिए आते भी हैं तो ऊधमसिंह नगर, हरिद्वार और देहरादून के आसपास के इलाकों में फोकस करेंगे।