देहरादून : विजय दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने देहरादून के गांधी पार्क में 1971 के युद्ध में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी और साथ ही पूर्व सैनिकों और उनके परिजनों को सम्मानित किया। इस मौके पर सीएम ने कहा कि 1971 के युद्ध में उत्तराखंड के 248 सैनिक और अधिकारी घायल हुए और 78 जांबाज शहीद हुए थे। इनमें अकेले देहरादून से 36 सैनिक थे।
उत्तराखंड को वीरों की भूमि यूं ही नहीं कहा जाता। यहां के वीर योद्धाओं ने समय-समय पर अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया है। 1971 का युद्ध भी इसी शौर्य का प्रतीक है। भारतीय सेना की इस विजयगाथा में उत्तराखंड के रणबांकुरों का बलिदान भुलाया नहीं जा सकता। इस युद्ध में प्रदेश के 255 रणबांकुरों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी थी। जबकि, रण में दुश्मन से मोर्चा लेते राज्य के 78 सैनिक घायल हुए।
74 जांबाजों को वीरता पदक मिले थे।
इन रणबांकुरों की कुर्बानी व अदम्य साहस को पूरी दुनिया ने माना। यही वजह है कि इस जंग में दुश्मन सेना से दो-दो हाथ करने वाले सूबे के 74 जांबाजों को वीरता पदक मिले थे। शौर्य और साहस की यह गाथा आज भी भावी पीढ़ी में जोश भरती है। इतिहास गवाह है कि वर्ष 1971 में हुए युद्ध में दुश्मन के हौसले पस्त करने में उत्तराखंड के जवान पीछे नहीं रहे।
तत्कालीन सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ (बाद में फील्ड मार्शल) व बांग्लादेश में पूर्वी कमान का नेतृत्व करने वाले सैन्य कमांडर ले. जनरल जेएस अरोड़ा ने भी प्रदेश के वीर जवानों के साहस को सलाम किया। युद्ध में शरीक होने वाले थलसेना, नौसेना व वायुसेना के तमाम योद्धा जंग के उन पलों को याद कर जोश से लबरेज हो जाते हैं।
विजयगाथा संजोए है आइएमए
16 दिसंबर ही वह दिन था जब पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने अपने करीब नब्बे हजार सैनिकों के साथ भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जेएस अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर हथियार डाल दिए थे। जनरल नियाजी के आत्मसमर्पण करने के साथ ही यह युद्ध भी समाप्त हो गया। इस दौरान जनरल नियाजी ने अपनी पिस्तौल जनरल अरोड़ा को सौंप दी थी। यह पिस्तौल आज भी भावी सैन्य अफसरों में जोश भरने का काम करती है।
भारतीय सेना का गौरवशाली इतिहास हमेशा से ही युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। इंडियन मिलेट्री ऐकेडमी (आइएमए) के म्यूजियम में रखे 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध की एतिहासिक धरोहर और दस्तावेज कैडेटों में अपने गौरवशाली इतिहास और परंपरा को कायम रखने की प्रेरणा देते हैं।