उत्तराखंड सरकार और पर्यटन विभाग भले ही चारधाम यात्रा में यात्रियों की लगातार बढ़ रही संख्या को उपलब्धि बताकर जश्न मना रहे हों, लेकिन इस बढ़ती भीड़ के पीछे एक बड़ा पर्यावरणीय खतरा तेजी से आकार ले रहा है।
श्रद्धालुओं के संख्या के साथ-साथ बढ़ा हजारों टन कूड़ा
सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस साल चारधाम यात्रा में 50 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं, जो अब तक का रिकॉर्ड है। लेकिन यह बढ़ती संख्या हाई हिमालय क्षेत्र में पर्यावरणीय संकट गहरा रही है। केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम लगभग 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अत्यंत संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में आते हैं। यहां विशाल ग्लेशियर, वन संपदा और दुर्लभ वन्यजीवों का महत्वपूर्ण अस्तित्व है। हर साल लाखों श्रद्धालु पुण्य लाभ लेकर लौटते हैं, लेकिन पीछे छोड़ जाते हैं हजारों टन कूड़ा, जिसमें प्लास्टिक की बोतलें, थर्मोकोल, रैपर, पैकेजिंग सामग्री और अन्य अपशिष्ट बड़ी मात्रा में शामिल है।
उच्च हिमालय में बढ़ रहा कूड़े का दबाव
वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो इसके सीधे दुष्परिणाम हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र, वन्यजीवों और ग्लेशियरों पर देखने को मिलेंगे। कूड़े को नीचे लाने के लिए अभी घोड़े-खच्चरों और पर्यावरण मित्रों की मदद से हजारों टन अपशिष्ट गौरीकुंड तक लाया जा रहा है। उसके बाद जैविक कचरा वाहनों से रुद्रप्रयाग पहुंचाया जाता है। उत्तराखंड पर्यावरण प्रदूषण बोर्ड के सदस्य सचिव पराग मधुकर धकाते के अनुसार हर साल 450 से अधिक पर्यावरण मित्र यात्रा मार्ग पर सेवाएं देते हैं, लेकिन कूड़े की तेजी से बढ़ती मात्रा लगातार चुनौती बढ़ा रही है।
यात्रियों और स्थानीय लोगों को किया जायेगा जागरूक
कूड़ा नियंत्रण के लिए सिंगल-यूज प्लास्टिक पहले से ही चारधाम में प्रतिबंधित है, लेकिन इसका पालन प्रभावी तरीके से नहीं हो पा रहा। फिलहाल भविष्य के लिए नए नियम बनाए जा रहे हैं, जिसमें जुर्माना बढ़ाने, कचरा नियमों पर सख्ती से अमल कराने और यात्रियों और स्थानीय लोगों को जागरूक करने की योजनाएं शामिल हैं।



