देहरादून – जिस लोकपाल बिल के लिए अन्ना हजारे के साथ देश खड़ा हो गया था। जिस लोकपाल मुहिम के तहत अरविंद केजरीवाल देश में न केवल नेता बनकर उभरे बल्कि दिल्ली के मुख्यमंत्री भी बन गए उसी लोकपाल बिल के एक हिस्से लोकायुक्त की उत्तराखंड सरकार के कोई जरूरत नहीं है। सूबे की टीएसआर सरकार दिल से नही चाहती कि राज्य में भ्रष्टाचार पर निगरानी के लिए लोकपाल जैसी संस्था वजूद में आए और उसकी तैनाती हो। इस बात को आज सूबे के शासकीय प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने स्वीकार किया।
जीरो टॉलरेंस की दुहाई देने वाली भाजपा सरकार को उत्तराखंड में लोकायुक्त की जरूरत नहीं है। सूबे में भाजपा सरकार बेहतर काम कर रही है कंही कोई गड़बड़ी नहीं है। ऐसें में हमे नहीं लगता कि राज्य में लोकायुक्त होना चाहिए लेकिन फिर भी तीन से चार महीने के भीतर राज्य में लोकायुक्त की तैनाती हो जाएगी।
गौरतलब है कि टीएसआर सरकार के गठन के तत्काल बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने मजबूत लोकायुक्त की वकालत की थी । हालांकि बाद में विधेयक को प्रवर समिति के पास भेज दिया गया था। आपको बता दें कि राज्य में कभी खंडूरी सरकार ने मजबूत लोकायुक्त की पैरवी की थी जिसमें सीएम समेत सभी जांच के दायरे में आ सकते थे। लेकिन उसके बाद कांग्रेस राज मे उसे मजबूत नहीं माना गया और उसमे बड़े संसोधनों की दरकार बताई गई। हालांकि कांग्रेस राज मे लोकायुक्त की नियुक्ति हर बार पचड़े में फंसी रही।
जबकि भाजपा राज में पहले एक महीने के भीतर लोकायुक्त के वजूद की बात हुई थी मगर अब खिसकते खिसकते पांच महीने पूरे हो गए हैं जबकि अभी तीन चार महीने की ओर बात हो रही है। हालांकि सरकार जीरो टॉलरेंस की बात हर जगह कर रही है।