सरकारी टेलिकॉम कंपनी बीएसएनएल के हाल बेहाल है. कंपनी के पास कर्मचारियों को जून की सैलरी देने तक के पैसे नहीं है ऐसे में कंपनी ने सरकार को एक एसओएस भेजा है, जिसमें कंपनी ने ऑपरेशंस जारी रखने में लगभग अक्षमता जताई है। कंपनी ने कहा है कि कैश कमी के चलते जून के लिए लगभग 850 करोड़ रुपये की सैलरी दे पाना मुश्किल है। कंपनी पर अभी करीब 13 हजार करोड़ रुपये की आउटस्टैंडिंग लायबिलिटी है, जिसके चलते बीएसएनएल का कारोबार डांवाडोल हो रहा है।
एसएनएल के कॉर्पोरेट बजट एंड बैंकिंग डिविजन के सीनियर जनरल मैनेजर ने लिखी चिट्ठी
बीएसएनएल के कॉर्पोरेट बजट एंड बैंकिंग डिविजन के सीनियर जनरल मैनेजर पूरन चंद्र ने टेलिकॉम मंत्रालय में जॉइंट सेक्रटरी को लिखे एक पत्र में लिखकर मांगी मदद.
ये लिखा चिट्ठी में
कंपनी के कॉर्पोरेट बजट एंड बैंकिंग डिविजन के सीनियर जनरल मैनेजर टेलिकॉम मंत्रालय में जॉइंट सेक्रटरी को पत्र में कहा कि हर महीने के रेवेन्यू और खर्चों में गैप के चलते अब कंपनी का संचालन जारी रखना चिंता का विषय बन गया है क्योंकि अब यह एक ऐसे लेवल पर पहुंच चुका है जहां बिना किसी पर्याप्त इक्विटी को शामिल किए बीएसएनएल के ऑपरेशंस जारी रखना लगभग नामुमकिन होगा। पिछले हफ्ते भी सार्वजनिक क्षेत्र की दूरसंचार कंपनी ने सरकार से कंपनी के भाग्य का फैसला करने क लिए अगली कार्यवाही से संबंधित सलाह मांगने के लिए एक चिट्ठी लिखी थी। बता दें कि बीएसएनएल सबसे ज्यादा घाटा सहने वाली टॉप पीएसयू है और कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की रिपोर्ट के मुताबिक, बीएसएनएल ने दिसंबर, 2018 के आखिर तक 90,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का परिचालन नुकसान झेलना पड़ा था।
कंपनी का घाटा क्यों बढ़ रहा?
1- कंपनी की कुल आमदनी का 55 फीसदी कर्मचारियों के वेतन पर खर्च होता है. हर साल इस बजट में 8 फीसदी बढ़ोत्तरी हो जाती है. मतलब ये कि वेतन पर खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है. और आमदनी गिर रही है.
2- रिलायंस जियो आने के बाद शुरू हुए डेटा और टैरिफ वार में कंपनी पिछड़ती चली गई. साल 2018 में कंपनी का लॉस करीब 8,000 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है. 2017 में ये घाटा 4,786 करोड़ रुपए था.
3– बीएसएनएल बैंकों से लोन लेना चाहती है. मगर सरकार चाहती है कि बीएसएनएल अपने स्रोतों से पैसे इकट्ठा करे. और उससे अपने खर्चे चलाए.
4– रिलायंस जियो, वोडाफोन और एयरटेल जैसी कंपनियां जब 4जी सर्विस के जरिए पैसे कूट रही हैं, तब बीएसएनएल पूरे देश में 4जी का नेटवर्क तक नहीं खड़ा कर पाई है.
5- बीएसएनएल अब घाटे में रहने वाले सार्वजनिक उपक्रमों में शामिल हो गई है. कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2018 में बीएसएनएल का घाटा 90,000 करोड़ रुपए के लेवल को पार कर चुका है.
6- पूरन चंद्रा की ओर से भेजी गई चिट्ठी में कंपनी चलाने के बाबत सरकार से सुझाव भी मांगे गए हैं. सरकार अब तक कोई प्लान नहीं दे पाई है. मतलब ये कि कंपनी आगे कैसे काम करेगी, इस पर सरकार का रुख साफ नहीं है.
7- बीएसएनएल को बंद करने का प्रस्ताव भी सरकार ठुकरा चुकी है. कंपनी के खर्च, खराब मैनेजमेंट, अनचाहे सरकारी दखल और आधुनिकीकरण योजना पर सरकारी चुप्पी की वजह से बीएसएनएल लगातार घाटे में है. बाजार में बीएसएनएल की हिस्सेदारी 10 फीसदी के आस-पास बची है.