देहरादून- तबादला, लोकायुक्त, सीबीआई जांच, अस्पताल दुरूस्त, पहाड़ो का काया कल्प, अटैचमेंट खत्म और ड्रेस कोड समेत जैसे कई मुद्दे उछाल कर 6 माह पुरानी त्रिवेंद्र सरकार ने पहले खूब सुर्खियां बटोरी। लेकिन फिर एक-एक कर के हर मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालती गई। कभी किसी बहाने और कभी किसी हवाले से।
सूबे के उच्च शिक्षा मंत्री डा. धन सिंह रावत ने शुरूआती दौर में कहा था कि उनकी सरकार में राज्य के महाविद्याल उच्छश्रंखलता नहीं गुरूकुल जैसा सिस्टम दिखाई देगा। लगेगा कि माहौल है छात्र छात्राओं से लेकर गुरूजन तक यूनिफार्म में दिखाई देंगे। लेकिन अब लग रहा है कि जैसे जैसे सरकार का अनुभव बढ़ रहा है वैसे वैसे सरकार का अंदाज भी बदलने लगा है।
कालेज कैंपसों मे गुरूजनों के ड्रेस कोड की बात तो अब कोई करता ही नहीं । जबकि छात्र-छात्राओँ के डेसकोड पर भाजपा से जुड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के तल्ख तेवरों को देखते हुए अब महसूस हो रहा है कि सरकार की भी धिग्गी बंध गई है।
दरअसल आज देहरादून में पुस्तक मेले के उद्घाटन के दौरान राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने कहा है कि महाविद्यालयों में ड्रेसकोड का फैसला बहुमत के आधार पर लिया जाएगा। अगर 51 फीसदी छात्र छात्राओं ने यूनिफॉर्म का बहिष्कार किया तो डिग्री कॉलेज में ड्रेस कोड लागू नहीं होगा।
ऐसे मे महसूस रहा है कि सूबे की सरकार में इतना दम नहीं कि अपनी कही बात पर कायम रह जाए। क्योंकि दर्जा 12 वीं तक यूनिफार्म में पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राएं कभी नहीं चाहेंगे कि उन्हें कालेज कैंपस में भी वर्दी का झंझट ढोना पड़े।
वहीं उच्च शिक्षा मंत्री के इस बयान के बाद चर्चाओं को बल मिल रहा है कि यूनिफार्म के अंगारे से खुद को शिक्षक संगठनों के तेवरों से झुलसा चुके विद्यालयी शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय भी इस मसले पर बैकफुट में जा सकते है।
दरअसल विद्यालयों मे यूनिफार्म को अपनी नाक का सवाल बना कर शिक्षकों को हाजिर होने की हसरत पाले अरविंद पांडे भी शायद 51ः49 का फार्मूला अपना कर अपनी साख बचा सकते हैं।
हालांकि होगा क्या ये तो 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के दिन पता चल जाएगा, क्योंकि सूबे के मुखिया ने शिक्षक संगठनों को पांच सितंबर तक का वक्त दे रखा है। लेकिन जिस तरह की चर्चाएं चल रही हैं और संकेत मिल रहे हैं उससे तो यही महसूस हो रहा है कि विद्यालयों में मंत्री जी पर गुरूजी ही भारी पड़ेंगे।