चमोली : उत्तराखंड अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता है। यहां कई तरह की जड़ी-बूटियों के साथ ही फूलों की घाटी और दूसरी जगहों पर दुनिया के दुर्लभ फूलों की प्रजातियां पाई जाती हैं। ऐसी ही दुर्लभ प्रजाति के एक फूल की चर्चा दुनियाभर में हो रही है। इस फूल के बारे में फ्रांस के एक रिसर्च जर्नल में छपे रिसर्च के बाद हुई है। इस फूल की खास बात यह है कि ये 100 साल बाद नजर आया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चमोली जिले में पहली बार ऑर्किड प्रजाति का दुर्लभ फूल ‘लिपारिस पिगमीआ’ पाया गया है। वन अनुसंधान केंद्र के रिसर्च फेलो मनोज सिंह और रेंजर हरीश नेगी ने इसकी खोज की है और इस खोज को फ्रांस के प्रतिष्ठित जर्नल रिकाॅर्डियाना में भी प्रकाशित किया गया है। यह पहला मौका है कि उत्तराखंड इस तरह का फूल मिला है। रिसर्च के मुताबिक यह भी पहली बार हुआ कि यह फूल पश्चिम हिमालय में देखा गया है।
उत्तराखंड में चमोली जिले में 3800 मीटर की ऊंचाई पर सप्तकुंड ट्रेक पर घनसाल उडियार के पास इस फूल को देखा गया। यह फूल इससे पहले सिक्किम और पश्चिम बंगाल में देखा गया था। वन अनुसंधान केंद्र के मुताबिक फूल करीब दो माह पूर्व खोजा गया था। इसे जांच के लिए पूणे स्थित बोटैनिकल सर्वे ऑफ इंडिया में भेजा गया। बीएसआई ने इस फूल के ‘लिपारिस पिगमीआ’ होने की पुष्टि की हैं।
फूल की खोज करने वाले रेंज अधिकारी हरीश नेगी ओर रिसर्च फेलो मनोज सिंह को ट्रेकिंग का जुनून है। दोनों ही सतोपंथ के ट्रेक पर थे और एक गुफा के पास उन्हें यह फूल नजर आया। मुख्य मार्ग से अलग यह जगह आकर्षक थी। मनोज सिंह टेक्सोनॉमी के विशेषज्ञ हैं। फूल कुछ अलग दिखा तो सैंपल लिया गया और बात आगे बढ़ी। मुख्य वन संरक्षक वन अनुसंधान संस्थान संजीव चतुर्वेदी ने कहा कि यह अब साबित हो गया है कि यह फूल पहली बार उत्तराखंड में देखा गया है। वन अनुसंधान केंद्र इसका अध्ययन करेगा और इसके संरक्षण के लिए काम करेगा।
रिसर्चर मनोज सिंह ने एक अखबार को बताया कि फूल 100 साल पहले सिक्किम में देखा गया था। नेपाल और चीन में भी यह रिपोर्ट किया गया। रेंजर हरीश नेगी ने कहा कि सतोपंथ का ये ट्रेक खास लोकप्रिय नहीं है। कम ही वनस्पति विज्ञानी तरफ जाते हैं। उन्होंने कहा कि उनको ट्रेक का शौक और पेड़ पौधों को परखना अच्छा लगता है। इस फूल की खोज में भी यही काम आया।