योगेश शर्मा
कोरोना वायरस कोविड-19 कि वैश्विक महामारी ने उत्तराखंड को सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक नुकसान पहुंचाया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जून के दूसरे सप्ताह से शुरू होने वाली विश्व प्रसिद्ध कैलाश मानसरोवर यात्रा, जिसको विदेश मंत्रालय द्वारा रद्द कर दिया गया है, लेकिन इस यात्रा के रद्द होने का सबसे ज्यादा प्रभाव देवभूमि उत्तराखंड पर पड़ेगा.
इस बार बम-बम भोले की गूंज न सुनाई देगी और न देशभर से आने वाले कैलाश मानसरोवर यात्रियों का दल दिखाई देगा. कोरोना वायरस की वजह से इस वर्ष यात्रा को रोक दिया गया है. लिहाजा आस्था पर भी कोरोना वायरस का यह असर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है. खासकर उत्तराखंड में जो न सिर्फ देवभूमि है, बल्कि विश्व प्रसिद्ध कैलाश मानसरोवर यात्रा की शुरुआत यहीं से होती है. हर वर्ष 12 जून से कैलाश मानसरोवर यात्रा की शुरुआत होती है. यात्रा के पहले पांच पड़ाव उत्तराखंड में पड़ते हैं. कैलाश मानसरोवर यात्रा उत्तराखंड में सबसे पहले काठगोदाम फिर भीमताल फिर अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ गूंजी नाभि डांग होते हुए चीन तिब्बत बॉर्डर तक पहुंचती है. इस यात्रा के ना होने से इस बार उत्तराखंड में इस यात्रा का संचालन करने वाली संस्था केएमवीएन यानी कुमाऊं मंडल विकास निगम को ही अकेले साढ़े 4 करोड़ से भी अधिक का नुकसान होगा।
वहीं, भगवान भोलेनाथ के निवास स्थल कैलाश पर्वत के दर्शन की विश्व की सबसे लंबी धार्मिक पैदल यात्रा के रुक जाने से शिव भक्त भी निराश हैं. इसके अलावा इस यात्रा के इस वर्ष ना होने से उत्तराखंड में आर्थिक नुकसान भी होगा. क्योंकि कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले यात्री सीमावर्ती क्षेत्रों में न सिर्फ होमस्टे में रहते हैं, बल्कि उनको पहाड़ी उत्पादों से बने स्वादिष्ट व्यंजनों का भोजन भी कराया जाता है, जिससे उस क्षेत्र की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है, लेकिन इस बार यह नहीं हो पाएगा केएमवीएन की उपाध्यक्ष रेनू अधिकारी का कहना है कि कोरोना वायरस के कहर ने वास्तविक रुप से काफी नुकसान पहुंचाया है.
हर साल 12 जून को हर-हर महादेव के जयकारे के साथ शुरू होने वाली इस यात्रा में कोरोना वायरस ने इस बार ऐसा विष घोल दिया है, जिससे कि यह पौराणिक यात्रा इस बार स्थगित कर दी गई है. ऐसे में अब शिव भक्तों को भगवान भोलेनाथ का सहारा है कि वो इस वायरस को खत्म कर सृष्टि में फिर से आस्था और धर्म की जीत का मार्ग सुनिश्चित करेंगे.