देहरादून: मजदूरों की घरवापसी इन दिनों खासी चर्चा में है। सरकार से लेकर नौकरशाह तक हर कोई इसका श्रेय लेने को आतुर है, लेकिन इस पूरे अभियान को जो कोरोना वारियर्स बिना किसी चर्चा के अंजाम दे रहे हैं। उनकी कहीं बात नहीं हो रही है। वो अपनी जान की फिक्र किये बगैर दिन-रात काम में जुटे हैं। रोडवेज बसों के चालक भूख और नींद की परवाह किए बिना प्रवासियों को उनके घर पहुंचा रहे हैं।
गुरुग्राम में उत्तराखंड के प्रवासियों को लेने पहुंचे चालकों के लिए वहां सोने और खाने का कोई इंतजाम नहीं था। मजबूरी में चालकों को खाली पेट बस लेकर आना पड़ा। हालांकि नारसन बॉर्डर पर उत्तराखंड में प्रवेश करने के बाद प्रशासन ने उन्हें खाने के पैकेट दिए, तब जाकर उनकी जान में जान आई। रोडवेज मुख्यालय की ओर से शनिवार को रुड़की, हरिद्वार और ग्रामीण डिपो देहरादून से रोडवेज की 103 बसों को उत्तराखंड के प्रवासियों को लाने के लिए गुरुग्राम के स्टेडियम में भेजा गया था।
यात्रियों के खाने का भी कोई इंतजाम नहीं किया गया था। खाने के नाम पर आधे से भी कम यात्रियों के सिर्फ एक-एक बिस्कुट का पैकेट दिया गया। 242 किमी के सफर के लिए आधे लीटर की पानी की बोतल दी गई। परिवहन निगम के जीएम संचालन दीपक जैने बताया कि कुछ दिक्कतें हो रही हैं, लेकिन काम करना भी जरूरी है। प्रशासन तो व्यवस्था कर रही ही रहा है। निगम भी हर संभव सुविधांए देने का प्रयास कर रहा है।