देहरादून : उत्तराखंड में कोरोना मरीज भले ही तेजी से ठीक हो रहे हों, लेकिन उतनी ही तेजी से मरीजों का आंकड़ा बढ़ भी रहा है। टेस्टिंग में कमी के कारण तेजी से कोरोना मरीजों की जांच का बैकलाॅग बढ़ता जा रहा है। जांच में तेजी आते ही कोरोना मरीजों की संख्या में भी तेजी से इजाफा हो सकता है।
सरकार और स्वास्थ्य विभाग चिंतित है। इसी चिंता को दूर करने के लिए उत्तराखंड में प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना मरीजों के इलाज की तैयारी चल रही है। इलाज से पहले ट्रायल किया जाएगा। इसके लिए दून मेडिकल कॉलेज में प्लाजमा थेरेपी की शुरु करने की तैयारी की जा रही है। दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कोरोना मरीजों के प्लाज्मा थेरेपी से इलाज की कवायद तेज हो गई है।
कॉलेज प्रशासन ने एफेरेसिस मशीन का ऑर्डर दिया है। पहले ट्रायल के पर प्लाज्मा थेरेपी दी जाएगी। दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना ने बताया कि प्लाज्मा कोरोना से गंभीर रूप में पीड़ित व्यक्ति को चढ़ाया जाता है। उन्होंने बताया कि जहां भी प्लाज्मा थैरेपी पर काम हुआ है, मरीजों की स्थिति में तेजी से सुधार हुआ है।एक एफेरेसिस मशीन मंगवाई जा रही है। आईसीएमआर से दिशा-निर्देश के अनुसार प्लाज्मा थेरेपी की जाएगी।
ऐसे होती है प्लाज्मा थेरेपी
-ठीक हो चुके लोगों के प्लाज्मा को मरीजों से ट्रांसफ्यूजन किया जाता है। थेरेपी में एंटीबॉडी का इस्तेमाल किया जाता है, जो किसी वायरस या बैक्टीरिया के खिलाफ शरीर में बनता है। यह एंटीबॉडी ठीक हो चुके मरीज के शरीर से निकालकर बीमार के शरीर में डाला जाता है।
-मरीज पर एंटीबॉडी का असर होने पर वायरस कमजोर होने लगता है। इसके बाद मरीज के ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है। प्लाज्मा डोनर को एफरेसिस मशीन (ब्लड में से प्लाज्मा अलग करने वाली मशीन) पर ले जाया जाता है।
-उसके शरीर में से तीन बार में ब्लड मशीन में भेजा जाता है। मशीन ब्लड में से प्लाज्मा अलग कर ब्लड को वापस दान करने वाले व्यक्ति के शरीर में पहुंचा देती है।
-उसके शरीर से 500 मिली प्लाज्मा निकाल माइनस 40 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर सहेजा जाता है। इसके बाद अस्पताल में भर्ती कोरोना के मरीजों के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है।